मेल-मिलाप का बहाना बने गीता
बिलकिस बानो ईधी संस्थापिका, ईधी फाउंडेशन, कराची मैडम, जब गीता यहां से रुखसत होगी, वह पल मैं नहीं देख सकूंगा, लिहाजा मैं कल काम पर नहीं आऊंगा. यह बात गीता के भारत आने से दो दिन पहले हमारे संस्थान में काम करनेवाले 60 वर्षीय सफाई कर्मचारी मोहम्मद बिलाल ने मुझसे कही थी. उनके शब्द जैसे […]
बिलकिस बानो ईधी
संस्थापिका, ईधी फाउंडेशन, कराची
मैडम, जब गीता यहां से रुखसत होगी, वह पल मैं नहीं देख सकूंगा, लिहाजा मैं कल काम पर नहीं आऊंगा. यह बात गीता के भारत आने से दो दिन पहले हमारे संस्थान में काम करनेवाले 60 वर्षीय सफाई कर्मचारी मोहम्मद बिलाल ने मुझसे कही थी. उनके शब्द जैसे ही मेरे कानों में पड़े, मेरी आंखों में आंसू आ गये.
भला एक कर्मचारी भी उस गीता से उतनी ही मोहब्बत कर बैठेगा, उसे भी गीता को खोने का गम ताउम्र सताता रहेगा! जब गीता को सुबह के वक्त पाकिस्तान से विदा किया जा रहा था, तो वहां मौजूद सैकड़ों लोग बिलख-बिलख कर रो रहे थे. उनको लग रहा था उनके जिगर का कोई टुकड़ा उनसे हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो रहा है. लोग उसे गले लगा रहे थे, तोहफे दे रहे थे, उसके बेहतर भविष्य की दुआएं दे रहे थे, लेकिन सभी को गम इस बात का था कि हमारा ईधी संस्थान सूना हो जायेगा.
गीता को लेकर जब हम भारत पहुंचे, हवाई अड्डे पर सैकड़ों लोगों द्वारा की गयी अगवानी और पीएम आवास पर जनसमूह का प्यार यह दर्शाने के लिए काफी था कि यहां के लोगों के भीतर कितनी करुणा है.
मुझे लगता है कि अल्लाह ने हमें गीता की परवरिश करने का नायाब तोहफा दिया है. इस बेजुबान बच्ची की वतन वापसी में दोनों मुल्कों की सरकारों का सामंजस्य देखने लायक रहा है. आपसी रंजिशें भुला कर पूरा जहां एक हो गया और गीता को उनके वतन भेजने में लग गया.
अब मैं दोनों देशों की हुकूमतों से गुजारिश करना चाहूंगी कि गीता दोनों मुल्कों के रिश्तों में मधुरता लाने में एक बहाना बने. गीता की अब उनके मुल्क में वापसी हो गयी, मगर इस पहल का इस्तेमाल भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच जमी बर्फ को पिघलाने के लिए किया जाये, तो अच्छा होगा.
आज से करीब 13-14 साल पहले पाकिस्तान सरकार की ओर से हमारे संस्थान (ईधी फाउंडेशन) में गीता को भेजा गया था. संस्थान में जब गीता आयी, उसकी हालत बहुत खराब थी. वह पीलिया रोग से पीड़ित थी.
हमने उनका इलाज शुरू किया. जब वह ठीक हुई, तो हमने इशारे से उसका नाम पूछा, लेकिन वह बता नहीं पायी. हमें यह समझने में कई महीने लग गये कि वह पाकिस्तान की नहीं, भारत की रहनेवाली है. वह हाथ जोड़ कर अभिवादन करती थी. फिर हमने भारतीय लड़कियों के कई प्रचलित नाम कागजों पर लिख कर उसे दिखाये, लेकिन सभी नामों पर उसने अपनी गर्दन ना में हिला दी. तभी मेरे जेहन में गीता नाम आया. मैंने सोचा गीता के नाम से भारतीय अदालतों में कसमें खायी जाती हैं.
इससे पाक नाम दूसरा नहीं हो सकता. और मैंने इसका नाम गीता रख दिया. गीता के बारे में हमने पाकिस्तान के कल्याण मंत्री को जानकारी दी, तो उन्होंने कहा कि इस बच्ची को किसी भी तरह की कोई समस्या न होने पाये. उसके बाद हमारे संस्थान के सदस्यों ने गीता को अपनी औलाद की तरह रखा है. मोहतरमा सुषमा स्वाराज जब प्रेसवार्ता कर रही थीं, तब वहां मौजूद पत्रकार लोग हमसे ही ज्यादा सवाल पूछ रहे थे, कि गीता आपको कैसे मिली, किस हालात में मिली. हमने सबको एक ही जवाब दिया कि गीता हमारी बच्ची है और हमेशा रहेगी. वह बेशक अब भारत में रहेगी, लेकिन हम उसकी खैरियत हमेशा जानते रहेंगे.
मेरे शौहर अब्दुल सत्तार ईधी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ जिले के गांव बंतवा में (1928 में) हुआ है. यह बात पीएम नरेंद्र मोदी साहब को नहीं पता थी. जब उन्हें मैंने यह बात बतायी, तो उन्होंने हमें परिवार के साथ जूनागढ़ आने का न्योता दिया. यह मेरे लिए किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है. यहां के लोगों का प्यार देख कर लगता ही नहीं कि मैं किसी गैर-मुल्क में हूं.
अब मुझे मलाल इस बात का है कि गीता ने अपने मां-बाप को पहचानने से मना कर दिया है. अल्लाह रहम करे और उसकी मुराद जल्द पूरी हो. हम पाकिस्तान वापस चले जायेंगे, लेकिन दिल गीता के पास ही रहेगा. हम तो खुदा का शुक्रिया अदा कर रहे थे कि भारत जाकर गीता को उसके मां-बाप को सौंप कर ही वापस लौटेंगे, पर फिलहाल इसमें पेच फंस गया है.
लेकिन, जिस तरह पूरा देश उसे हाथों-हाथ ले रहा है, वह एक समाज के तौर पर भारतीयों के संवेदनशील होने का सूचक है. यह बताता है कि हमें दूसरों के दुख-दर्द में खुद को शामिल करना आता है. अल्लाह से दुआ है कि इस बच्ची को भविष्य में अब कोई परेशानी न हो.
(रमेश ठाकुर की बातचीत पर आधारित)