संस्थानों को सुधारें

लोकतंत्र की अच्छी बातों में एक यह भी है कि उसमें कोई भी एकाधिपत्य नहीं जमा सकता. विधि आधारित शासन होने के चलते सभी विधि से ही बंधे रहते हैं और विधि किसी एक संस्था को सारे अधिकार नहीं देती. इसे हम सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी में देख सकते हैं, जिसमें कहा गया है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2015 12:45 AM
लोकतंत्र की अच्छी बातों में एक यह भी है कि उसमें कोई भी एकाधिपत्य नहीं जमा सकता. विधि आधारित शासन होने के चलते सभी विधि से ही बंधे रहते हैं और विधि किसी एक संस्था को सारे अधिकार नहीं देती.
इसे हम सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी में देख सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि उच्च अध्ययन के संस्थानों में किसी तरह का आरक्षण नहीं होना चाहिए. कोर्ट की यह टिप्पणी एक जैसी शिकायतोंवाली कुछ याचिकाओं पर आयी हैं. ये याचिकाएं आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना से संबंधित हैं, जहां चिकित्सा विज्ञान के विशिष्ट पाठ्यक्रमों में दाखिला सिर्फ उसी राज्य के निवासियों को मिलता है.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह नियम शेष राज्यों के समान रूप से प्रतिभावान विद्यार्थियों के हित और देशहित में उत्कृष्ट कोटि की चिकित्सा सुविधा के विस्तार के लिहाज से ठीक नहीं है. लेकिन, यहां ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आरक्षण के ऊपर प्रतिभा को तरजीह देने की सलाह के बावजूद कोर्ट ने दाखिले की प्रक्रिया में हस्तक्षेप से इनकार किया है. उसने यह नहीं कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण असंवैधानिक है. इसलिए इस बहस को आरक्षण के सवाल से आगे ले जाने की भी जरूरत है.
जरा ठहर कर सोचें कि पूरे देश में पर्याप्त संख्या में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षण संस्थान क्यों नहीं हैं? देश में उच्च शिक्षा की मुख्य दिक्कत संस्थानों में स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षण नहीं, बल्कि अच्छे संस्थानों की कमी है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि देश में कॉलेज जाने की उम्र (18-23 वर्ष) के करीब 14 करोड़ लोग हैं. कॉलेजों की कुल संख्या के लिहाज से देखें, तो इस उम्र के एक लाख लोगों पर औसतन सिर्फ 25 कॉलेज हैं. उच्च शिक्षा में सकल नामांकन प्रतिशत के मामले में भी भारत (21.1%) चीन (30%), जापान(55%), ब्रिटेन(59%) और अमेरिका (34%) से काफी पीछे है.
देश में जो सरकारी एवं निजी मेडिकल एवं अन्य व्यावसायिक शिक्षण संस्थान मौजूद हैं, उनमें से ज्यादातर में न तो योग्य शिक्षक हैं, न ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर. मोटी राशि खर्च कर यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद भी छात्र रोजगार देने लायक नहीं हो पाते. इसलिए जरूरी यह है कि हम देश में पर्याप्त संख्या में कॉलेज और शोध-संस्थान खोलें और उपलब्ध संस्थानों की गुणवत्ता सुधारने के लिए कारगर कदम उठाएं, जिससे मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में भटकना न पड़े.

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