शिक्षा से अभिप्राय साक्षरता नहीं

यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि इनसान का सृजन प्रकृति की सर्वोत्तम एवं अनमोल देन है. लेकिन इनसान का इनसान बने रहने के लिए शिक्षित होना अतिआवश्यक है. वरना इंसान ही शैतान बन कर भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अलग–अलग तरह के अपराधों में संलिप्त हो जाता है. यहां शिक्षा से अभिप्राय साक्षरता कतई नहीं है, बल्कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 28, 2013 7:05 AM

यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि इनसान का सृजन प्रकृति की सर्वोत्तम एवं अनमोल देन है. लेकिन इनसान का इनसान बने रहने के लिए शिक्षित होना अतिआवश्यक है. वरना इंसान ही शैतान बन कर भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अलगअलग तरह के अपराधों में संलिप्त हो जाता है.

यहां शिक्षा से अभिप्राय साक्षरता कतई नहीं है, बल्कि शिक्षा से अभिप्राय मानव मूल्यों का विकास, नैतिकता का विकास, बौद्धिक क्षमताओं के विकास आदि से है. इन सब चीजों की हमें आज के परिप्रेक्ष्य में बड़ी जरूरत है.

ईश्वर ने भी मानव शरीर की रचना में मस्तिष्क को सर्वोच्च स्थान दिया है. शायद तभी तो हमारे शरीर में हमारा मस्तिष्क सबसे ऊपर होता है. अत: शिक्षा पर विशेष एवं समुचित ध्यान देने पर राष्ट्र एवं समाज स्वयं विकास की ओर अग्रसर हो जायेंगे.

आज जिन भ्रष्टाचारियों एवं आतंकवादियों से हम सदाचार एवं शांति की अपील करते हैं और उनकी कारस्तानियों पर रोकथाम लगाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करते हैं, वे निश्चित रूप से साक्षर तो होते ही हैं, और इसी वजह से वे अपने मंसूबों को इतनी सफाई से अंजाम देते हैं कि जल्दी कानून तो क्या, संबंधित लोगों की भी पकड़ में नहीं पाते हैं. ऐसे लोग जब असल मायने में शिक्षित हो जायेंगे, तो वे गलत रास्ते का परित्याग खुदखुद कर देंगे. जो काम सजा से नहीं हो सकता है, शिक्षा से संभव है. लेकिन शर्त यह है कि यह शिक्षा सर्वप्रथम हमारे घरों से दी जानी शुरू हो और उसके बाद देश और समाज में जो पारंपरिक शिक्षा संस्थान हैं, उनमें भी नयी पौध को साक्षर बनाने से ज्यादा जोर शिक्षित बनाने पर देना होगा, क्योंकि इलाज से बचाव हमेशा ही बेहतरहोता है.

राकेश कुमार सिंह, हजारीबाग

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