कथनी और करनी में फर्क

झारखंड में वह सबकुछ हो सकता है जिसकी किसी ने कल्पना भी न की हो. सत्ता के आगे सारे लोक-लिहाज, नियम-कानून धरे के धरे रह जा रहे हैं. मैं हाल ही में रामगढ़ जिले की एक घटना प्रस्तुत कर रहा हूं. झारखंड के मुख्यमंत्री ने कुछ दिनों पहले स्थानीयता नीति पर खूब बढ़-चढ़ कर बोला […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2013 4:20 AM

झारखंड में वह सबकुछ हो सकता है जिसकी किसी ने कल्पना भी न की हो. सत्ता के आगे सारे लोक-लिहाज, नियम-कानून धरे के धरे रह जा रहे हैं. मैं हाल ही में रामगढ़ जिले की एक घटना प्रस्तुत कर रहा हूं. झारखंड के मुख्यमंत्री ने कुछ दिनों पहले स्थानीयता नीति पर खूब बढ़-चढ़ कर बोला था, जिसे सारे झारखंड की जनता ने देखा-सुना.

अब देखिए, सत्ताधारी दल के नेतागण ने खुलेआम मुंबई की कंपनी के साथ मिल कर बालू घाटों की नीलामी में हिस्सा लिया और मुंबई की कंपनी को ही बंदोबस्ती मिली, जबकि झामुमो को छोड़ कर सभी राजनीतिक दल बाहरी बोलीदाताओं के विरोध में धरना-प्रदर्शन कर रहे थे और स्थानीय बोलीदाताओं का समर्थन कर रहे थे. कोई मुख्यमंत्री से पूछे कि कहां गयी उनकी स्थानीय नीति? साहब, कहने और करने में बड़ा फर्क होता है!

अजय चित्र, लारी, रामगढ़

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