नेपाल की नयी राह
पिछले दिनों नेपाल के संदर्भ में दो खबरें ऐसी आयी हैं, जो भारतीय कूटनीति की विफलता को इंगित करती हैं. पहली खबर यह है कि नेपाल ने ईंधन की आपूर्त्ति के लिए चीन के साथ करार किया है, और दूसरी यह कि चीन ने नेपाल के बारे में भारत से ‘दोस्ताना बातचीत’ का प्रस्ताव रखा […]
पिछले दिनों नेपाल के संदर्भ में दो खबरें ऐसी आयी हैं, जो भारतीय कूटनीति की विफलता को इंगित करती हैं. पहली खबर यह है कि नेपाल ने ईंधन की आपूर्त्ति के लिए चीन के साथ करार किया है, और दूसरी यह कि चीन ने नेपाल के बारे में भारत से ‘दोस्ताना बातचीत’ का प्रस्ताव रखा है.
नेपाल में गत 20 सितंबर को संविधान लागू होने के बाद चल रहे मधेस आंदोलन के कारण भारत से की जानेवाली तेल एवं रसोई गैस की आपूर्ति बाधित हो रही है. इससे उत्पन्न संकट के समाधान के लिए नेपाल ने चीन का दामन थामा है.
नेपाल की अधिकतर पार्टियों ने मौजूदा राजनीतिक संकट के लिए सीधे तौर पर भारत को जिम्मेवार ठहराया है और आरोप लगाया है कि मधेस आंदोलन की आड़ में भारत बेजा दबाव डालने की कोशिश कर रहा है. हालांकि भारत ने आधिकारिक तौर पर इन आरोपों को बार-बार खारिज किया है, पर दोनों देशों के बीच विश्वास के संकट को समाप्त करने में नाकामी ही हाथ लगी है.
भारत के सबसे करीबी पड़ोसी देश की चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों को विश्लेषक भारतीय कूटनीति के बेअसर होने के रूप में देख रहे हैं. अब तक भारत-नेपाल संबंधों में किसी तीसरे देश का कोई हस्तक्षेप नहीं रहा है, पर चीन के ताजा बयान से साफ संकेत मिलता है कि नेपाल पर चीन का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया है.
नये संविधान तहत निर्वाचित नेपाल के नये प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति अपनी वामपंथी पृष्ठभूमि के कारण चीन के अधिक करीबी हैं तथा उन्हें नेपाली माओवादियों का भी समर्थन प्राप्त है. ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि राजनीतिक गतिरोध जारी रहने की स्थिति में मधेस समुदाय नेपाल से अलगाववाद की राह भी पकड़ सकता है. अगर ऐसा होता है, तो भारत की उत्तरी सीमा की सुरक्षा के लिए चुनौती उत्पन्न हो सकती है, जो भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए गंभीर रूप से खतरनाक है.
अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई संकेत गया कि इस अलगाववाद को भारत की ओर से शह मिल रहा है, तो इसका प्रतिकूल असर हमारे वैश्विक हितों को भी भुगतना पड़ सकता है.
ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि भारत अपनी कूटनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार करते हुए पड़ोसी देश नेपाल के साथ भरोसे की बहाली के गंभीर प्रयत्न करे और अपनी पुरानी साख को फिर से हासिल करने की कोशिश करे. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो इसके चिंताजनक राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिणाम हो सकते हैं.