चुनाव में इतनी गिरी जुबान!

चंचल सामाजिक कार्यकर्ता नवल उपाधिया हड़बड़ी में आये. नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे सैलून लगता है, साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गये. अचानक जोर से चीखे- अबे उमर के बच्चे! जहां कहीं भी हो तुरंत सामने आओ, तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़-झंडूस देखे हैं. सुनो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 31, 2015 2:02 AM

चंचल

सामाजिक कार्यकर्ता

नवल उपाधिया हड़बड़ी में आये. नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे सैलून लगता है, साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गये. अचानक जोर से चीखे- अबे उमर के बच्चे! जहां कहीं भी हो तुरंत सामने आओ, तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़-झंडूस देखे हैं.

सुनो हो पंचो! कीन कह रहे थे कि कल तुम रामलाल के दुकान से पटाखा खरीद रहे थे? तुम्हारी ये हिम्मत! एक-एक कर के देश निकाला कर देंगे. सुना है तुम भी पटाखा दगाओगे? जानते नहीं हो, कीन उपाध्याय को…

लाल्साहेब की दुकान पर चाय के इंतजार में जमी संसद नवल को देख रही है. लखन कहार ने धीरे से जवाब दिया- को नहीं जानत है जग में…’ लेकिन कीन समझ गये और वह मसोस कर रह गये. उस समय कीन एक पैर पर खड़े थे, एक पैर मोड़ कर पीछे दीवार पर टिकाये अखबार बांच रहे थे.

हालांकि, अभी ताजा अखबार आया नहीं था. यहां इस चौराहे का अलिखित नियम है कि अखबार उम्र, पद और गरिमा के हिसाब से पढ़ने को मिलता है और कीन का नंबर जब तक आता है, सांझ हो जाती है. लोग अखबार देखेंगे, अपनी आबो-हवा बदलेंगे, वरना उनको घर पर चाय नहीं मिलेगी क्या?

लाल्साहेब बोले, दुकानदार का पहला फर्ज है कि वह अपने ग्राहक का खयाल रखे, समझे कीन? पहले अपनी दुकान से झांक लिया करो, जब यहां कोई न रहे, तब आकर पढ़ लिया करो. कीन जानते हैं कि लाल्साहेब पुरान मुरहा है, और गाहक तो दिन भर आते ही रहते हैं.

उमर दरजी ने कीन को उकसाया, का लिखा है कीन गुरू? कीन मुस्कुराये- वही लिखा है, जो नवल उपाधिया बोल रहे थे. तब तक नवल हाजिर हो गये. उमर ने नवल को घुड़का- का बोल रहे थे हमरे बारे में? देखो नवल! रहना हो तो तमीज से रहो, वरना इतनी मार खाओगे कि मुंह और जूते में फर्क गायब हो जायेगा. नवल मुस्कुरा रहे हैं- और बोल. जितना बोलते बने बोल ले, फिर बताते हैं. उमर एक कदम आगे बढ़के नवल के नजदीक आ गया- सुन पंडित हीरामन उपाध्याय के सुपुत्र! तू अगर अपने आपको न सुधारा तो…

– तो का कर लोगे?

– कनपटी पर दो कंटास देंगे और चले जायेंगे अपनी दुकान पर.

नवल कीन की तरफ मुड़े- कीन भाय! इसको पाकिस्तान भेज देते तो गांव सुधर जाता. उमर मुस्कुराया- पाकिस्तान तोरे बाप बसाये रहे कि कीन के बाप…? और चाय के हांका लगते ही संबाद रुक गया. चूंकि नवल उस समय खैनी मल रहे थे, उमर दरजी ने नवल की चाय भी दूसरे हाथ में पकड़ रखी थी और नवल के बगल खड़े रहे. गांव में यह रोज की जिंदगी है. इस रवायत की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इनको उखाड़ना आसान नहीं है.

अखबार आ गया. चिखुरी ने अखबार उठा कर मद्दू पत्रकार की तरफ बढ़ा दिया- देखिए, आज कौन सा बवाल है? मद्दू ने अखबार उठाया- बिहार में अगर हम हारे, तो पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे… अमित शाह ने रक्सौल में बोला है. चिखुरी ने गर्दन ऊपर उठायी- बिहार में तो एक-एक करके इन नेताओं की असलियत जनता के सामने खुलती जा रही है. बिहार में चुनाव इतनी गिरी जुबान में शायद पहले कभी नहीं हुआ.

चिखुरी बोलते रहे- दुर्भाग्य देखो कि जिनके हाथ में मुल्क की बागडोर है, वे भी ऐसी भाषा बोल रहे हैं. एक लड़की मीसा के बारे में जो बोला गया, वह सड़क छाप लफंगे भी बोलने के पहले अगल-बगल झांक लेते हैं कि कोई बुजुर्ग तो नहीं सुन रहा है. और इधर ये मुखिया महोदय हैं कि सरेआम लाउडस्पीकर से चीख-चीख कर बोल रहे हैं. यह हमारा मुल्क है?

यहां गांधी, लोहिया, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, किस-किस ने राजनीति नहीं की. एक-दूसरे के विरोध में रहे, लेकिन दुश्मन नहीं थे. मतभेद और मनभेद का मर्म जानते थे.

इसी मुल्क में पंडित नेहरू चाहते थे कि संसद में डॉ लोहिया और कृपलानी जैसे लोग आयें, सैद्धांतिक बहस चले. उसी मुल्क ने आज लगता है सियासत को संदुक्चियों और बंदुक्चियों के हाथ सौंप दिया है. लेकिन जो रपट बिहार से आ रही है, लगता है शुभ होगा और बिहार देश को नयी डगर दिखायेगा…

एक चाय और? लाल्साहेब ने टोक दिया. बात रुक गयी और चाय हाथों में. तब तक ररा नाई चीखा- भाई, सैलून में साइकिल किसने डाल दिया… जोर का ठहाका लगा. करियवा कुकुर गुर्राया. नवल ने साइकिल उठायी और गाते हुए आगे बढ़ गये… मोरा सैंया गवन लिये जायें हो, करौना की छैयां छैयां…

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