बैंकों की सुरक्षा की अब समीक्षा जरूरी

बैंकों से लूट की घटनाएं लगातार जारी हैं. कहा जा सकता है कि बेरोकटोक. इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आमलोगों को तो नुकसान होता ही है, बैंकों की व्यावसायिक गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं. ऐसे में जरूरी हो गया है कि बैंक अपनी सुरक्षा व्यवस्था की फिर से गंभीर समीक्षा करें. पुलिस व सुरक्षा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 30, 2013 3:10 AM

बैंकों से लूट की घटनाएं लगातार जारी हैं. कहा जा सकता है कि बेरोकटोक. इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आमलोगों को तो नुकसान होता ही है, बैंकों की व्यावसायिक गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं. ऐसे में जरूरी हो गया है कि बैंक अपनी सुरक्षा व्यवस्था की फिर से गंभीर समीक्षा करें. पुलिस व सुरक्षा के लिए जिम्मेवार दूसरी एजेंसियों पर दबाव बनायें. अपराधियों को बैंकिंग नेटवर्क से दूर रखने के जो भी इंतजाम हैं, उन पर विचार किया जाये.

नहीं तो, बैंकों के पैसों की लूट का जो सिलसिला चल रहा है, उससे आमलोगों की क्षति बढ़ती ही जायेगी. भूलना नहीं चाहिए कि वर्ष 2013 में ही बिहार के अलग-अलग हिस्सों में लूट की कई घटनाएं हो चुकी हैं. सूबे में सक्रिय अपराधियों ने इसी वर्ष बैंकों के करीब दो करोड़ रुपये लूट लिये हैं. बैंक के पैसों की लूट की अब तक की सबसे बड़ी घटना भी बिहार में ही हुई है. इसी वर्ष. विगत तीन अप्रैल को, जब पंजाब नेशनल बैंक की छपरा शाखा से करीब 20 किलोमीटर दूर जनता बाजार शाखा को ले जायी जा रही करीब 1.20 करोड़ की रकम पर अपराधियों ने सफलतापूर्वक हाथ साफ कर लिये.

इस घटना के तीन महीने बाद ही सीतामढ़ी के रीगा थाना इलाके में भी अपराधियों ने बैंक के पैसे लूट लिये. 25 लाख रुपये. इस मामले में तो एक बैंककर्मी की जान भी चली गयी. विगत 26 अक्तूबर को भी बिहारशरीफ के खोदागंज थाना इलाके में मध्य बिहार ग्रामीण बैंक के 3.38 लाख रुपये लुट गये. और अब औरंगाबाद में भी ऐसी ही वारदात हो गयी. यहां भी अपराधियों ने बड़ी रकम हथिया ली. 43 लाख रुपये. पर, अब तक ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई गंभीर प्रयास किया जा रहा हो, ऐसा नहीं दिख रहा.

पुलिस-प्रशासन इन वारदातों से सबक ले रहे हों, ऐसा भी नहीं लग रहा. लूट के ट्रेंड को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों को गंभीर होना होगा. अपराध विरोधी प्रशासनिक तल्खी से अपराधियों में कड़े संदेश जाने चाहिए, जो नहीं जा रहे. वैसे, इससे पहले कि व्यापक प्रभाव छोड़नेवाला कोई कदम उठे, बैंकों को स्थानीय स्तर पर भी सुरक्षा रणनीति में बदलाव करना चाहिए. मसलन, कैश वैन के रंग-रूप में एक निश्चित अंतराल पर बदलाव करने के अतिरिक्त रुपये एक जगह से दूसरी जगह ले जानेवाले लोगों की टीम/संस्था में बीच-बीच में परिवर्तन आदि.

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