समृद्धि की शर्त

यह समझ सदियों से चली आ रही है कि समृद्धि का सामाजिक सहकार और सामंजस्य के भाव से एक निश्चित रिश्ता है. गोस्वामी तुलसीदास ने इसे दोहे में बांध कर अमर कर दिया- ‘जहं सुमति तहां संपत्ति नाना.’ आर्थिक मोरचे के कई दिग्गज, जिसमें इन्फोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति से लेकर आरबीआइ के गवर्नर रघुराम राजन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 3, 2015 3:38 AM
यह समझ सदियों से चली आ रही है कि समृद्धि का सामाजिक सहकार और सामंजस्य के भाव से एक निश्चित रिश्ता है. गोस्वामी तुलसीदास ने इसे दोहे में बांध कर अमर कर दिया- ‘जहं सुमति तहां संपत्ति नाना.’ आर्थिक मोरचे के कई दिग्गज, जिसमें इन्फोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति से लेकर आरबीआइ के गवर्नर रघुराम राजन तक शामिल हैं, सरकार से सामाजिक सहकार और सामंजस्य यानी सुमति की वापसी के लिए कदम उठाने की बात कह चुके हैं.
उद्योग-जगत की तरफ से ‘सुमति’ की वापसी की बात कहनेवाले विशिष्ट जनों में नया नाम किरन मजूमदार शॉ और लार्ड मेघनाद देसाई का भी है. किरन मजूमदार को 2014 में फोर्ब्स पत्रिका ने दुनिया की सौ शक्तिशाली महिला हस्तियों में शामिल किया था.
नारायणमूर्ति की तरह किरन मजूमदार को भी लग रहा है कि किसी भी देश में विदेशी निवेश के लिए सामंजस्यपूर्ण वातावरण जरूरी है, क्योंकि निवेशक अपनी पूंजी की सुरक्षा और उससे सतत लाभ चाहता है, पर भारत में फिलहाल ऐसा सामंजस्यपूर्ण परिवेश दिख नहीं रहा. आर्थिक जगत के दिग्गज विश्लेषकों में शुमार लार्ड मेघनाद देसाई का भी मानना है कि सामाजिक सौहार्द का माहौल न रहने की स्थिति में विदेशों में भारत की छवि को नुकसान पहुंच सकता है और यह विदेशी पूंजी निवेश के मोरचे पर नुकसान में तब्दील हो सकता है.
अग्रणी उद्यमियों और विश्लेषकों की ऐसी राय के बीच उद्योग जगत के नये आंकड़े भी बहुत उत्साहित करनेवाले नहीं है. खबर आयी है कि नये आर्डर की कमी के चलते गत अक्तूबर माह में विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि बीते 22 महीनों के लिहाज से सबसे नीचे चली गयी है. अप्रैल से जून के बीच जीडीपी की वृद्धि दर 7 प्रतिशत रही, जबकि इससे पहले की तिमाही में 7.6 प्रतिशत थी.
रिजर्व बैंक ने वृद्धि की रफ्तार बनाये रखने के लिए ब्याज दरों को उद्योग जगत के लिहाज से आसान बनाया, तो भी आर्थिक वृद्धि के आकलन को 7.6 प्रतिशत से घटा कर 7.4 प्रतिशत कर दिया है. हालांकि सामंजस्य कायम करने और वृद्धि की रफ्तार बनाये रखने की अपील और कोशिश के बीच अच्छी खबर यह है कि केंद्र सरकार बिहार चुनावों के बाद नीतिगत सुधार के कई कदम उठा सकती है.
ऊर्जा क्षेत्र, बुनियादी ढांचे और श्रम के क्षेत्र में नीतिगत सुधार की पहलकदमियों के सहारे सरकार विकास की यात्रा को गति देने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है. उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके परिणाम सकारात्मक होंगे.

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