दोहरी चुनौती के लिए मिलीजुली नीति

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर अपना संदेश दे दिया है. संदेश यह है कि केंद्रीय बैंक विकास बनाम महंगाई की बहस में महंगाई पर लगाम लगाने के पक्ष में तो है, लेकिन वह विकास की भी अनदेखी करने को तैयार नहीं है. रघुराम राजन द्वारा आरबीआइ का गवर्नर का पद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 31, 2013 3:38 AM

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर अपना संदेश दे दिया है. संदेश यह है कि केंद्रीय बैंक विकास बनाम महंगाई की बहस में महंगाई पर लगाम लगाने के पक्ष में तो है, लेकिन वह विकास की भी अनदेखी करने को तैयार नहीं है. रघुराम राजन द्वारा आरबीआइ का गवर्नर का पद संभालने के वक्त बाजार के कुछ हिस्सों की ऐसी धारणा बनती दिखी थी कि वे महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए ऊंचे ब्याज दर की लंबे समय से चली आ रही नीति का त्याग कर सकते हैं.

हालांकि, खुद राजन ने पदभार ग्रहण करने से पहले कहा था कि महंगाई पर नियंत्रण आरबीआइ की प्रमुख चिंता होगी. मंगलवार को इसी दिशा में बढ़ते हुए राजन ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी करने की घोषणा की. रेपो रेट वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक, बैंकों को कर्ज मुहैया कराता है. चूंकि रेपो रेट में वृद्धि से बैंकों को मिलनेवाला कर्ज महंगा हो जाता है, इसलिए बैंकों को भी ग्राहकों को ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज देना पड़ता है. इससे तरलता में कमी आती है. गौरतलब है कि तरलता में वृद्धि से लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ती है और चीजें महंगी होती हैं.

लेकिन, भारतीय अर्थव्यवस्था की कमजोर स्थिति के मद्देनजर आरबीआइ विकास की उपेक्षा नहीं कर सकता. यही कारण है कि मुद्रास्फीति पर कठोर रुख अपनाने के संग-संग राजन ने विकास की बंद पड़ी गाड़ी में भी ईंधन डालने की कोशिश की है. नयी ब्याज दरों की घोषणा करते हुए राजन ने कहा भी कि कोई भी केंद्रीय बैंक सिर्फ आंखें मूंद कर सिर्फ मुद्रास्फीति के खिलाफ नहीं लड़ सकता. विकास और मुद्रास्फीति की दोहरी चुनौती का सामना करने के लिए आरबीआइ ने कई ऐसे उपायों की घोषणा की, जिनका मकसद बाजार में तरलता में संकुचन की स्थिति पैदा होने से रोकना है.

इस क्रम में आरबीआइ ने माजिर्नल स्टैंडिंग फैसिलिटी (वह दर जिस पर बैंक एक रात के लिए आरबीआइ से उधार लेते हैं) और सात दिन और चौदह दिन के लिए लिये जानेवाले कर्ज की सीमा में इजाफा किया है. इसे एक तरह से मिलीजुली नीति कहा जा सकता है, लेकिन इसका परिणाम सामने आने में वक्त लगेगा. अब देखना यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के मर्ज को राजन की यह गोली कितना ठीक कर पाती है!

Next Article

Exit mobile version