महिलाओं के प्रति हो सकारात्मक सोच
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच रखते थे. उस वक्त देश और समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. उन्होंने महिलाओं को सम्मान दिलाने की दिशा में कई कार्य किये. वे स्त्रियों को पुरुषों से किसी भी दृष्टि से कम नहीं आंकते थे. इसीलिए वे महिलाओं के प्रति बुरा सोचना अन्यायपूर्ण […]
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच रखते थे. उस वक्त देश और समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. उन्होंने महिलाओं को सम्मान दिलाने की दिशा में कई कार्य किये. वे स्त्रियों को पुरुषों से किसी भी दृष्टि से कम नहीं आंकते थे.
इसीलिए वे महिलाओं के प्रति बुरा सोचना अन्यायपूर्ण ही नहीं, बल्कि अपमानजनक भी मानते थे. उस समय बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, देवदासी जैसी कई कुरीतियां फल-फूल रही थीं. इन सबके साथ-साथ वे रूढ़िवादी सोच के प्रति भी चिंतित थे. इन सबसे मुक्ति के लिए गांधीजी ने आजीवन प्रयास किये और उन्हीं के प्रयासों का फल है कि स्त्रियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिला कर अपना सहयोग दिया.
बापू के समय में कई दिक्कतें थीं, पर उन्होंने सबको दूर किया और उपेक्षा का दंश झेल रही महिलाओं में जागृति पैदा की. परिणामस्वरूप, आजादी की लड़ाई से लेकर तत्कालीन हर परिवर्तन में महिलाएं अगली पंक्ति में खड़ी नजर आयीं. उनका सम्मान बढ़ा और वे आदरणीय हुईं.
आज के माहौल में बापू की उसी प्रेरणा को याद करने की जरूरत है. आज पुन: महिलाएं शोषण व उपेक्षा की शिकार हो रही हैं. इसमें बदलाव की राह बापू के आदर्शों से ही निकलती है. आज की पीढ़ी के लिए यह जरूरी है कि आत्ममंथन करें, नारीशक्ति को पहचानें और यह याद रखें कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं.
अब तो सेना की भी अग्रिम पंक्ति में उनकी सशक्त उपस्थिति दर्ज की जा रही है. इतना ही नहीं, देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भी उनका स्थान ऊंचा है. आज हमारे देश की नारी अबला नहीं, सबला है. अगर तरक्की करनी है, तो हमें नारी का सम्मान करना होगा और कंधे से कंधा मिला कर चलना ही होगा.
-अभिषेक रंजन, मलकोको, हजारीबाग