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टीम इंडिया में सब ठीक नहीं

अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर भारतीय क्रिकेट टीम बदलाव के दौर से गुजर रही है. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 और वनडे मैचों में जिस तरीके से भारतीय टीम हारी, वह भी अपनी धरती पर, उसने यह साबित कर दिया कि टीम इंडिया में भारी कमी है. टी-20 और वनडे मैचों का नेतृत्व […]

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

भारतीय क्रिकेट टीम बदलाव के दौर से गुजर रही है. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 और वनडे मैचों में जिस तरीके से भारतीय टीम हारी, वह भी अपनी धरती पर, उसने यह साबित कर दिया कि टीम इंडिया में भारी कमी है. टी-20 और वनडे मैचों का नेतृत्व धौनी के हाथों में था. उन पर भी अंगुली उठी. कहा गया कि धौनी में अब वह ताकत नहीं रही, बेस्ट फिनिशर अब वे नहीं रहे, रन नहीं बन रहा, उम्र हावी हो गयी है आदि-आदि.

यानी टीम इंडिया हारी तो सारा दोष धौनी पर मढ़ दिया गया. इस बात को भूल गये कि टीम में 11 खिलाड़ी होते हैं और अधिकतर खिलाड़ी अगर बेहतर प्रदर्शन नहीं करते, तो टीम हारेगी ही. धौनी ने स्वीकार भी किया कि टीम व्यवस्थित नहीं है यानी टीम बन ही नहीं पायी है. धौनी ने यह बात यों ही नहीं कही है. उन्होंने सच्चाई को स्वीकार किया है.

टीम इंडिया के संतुलन पर गौर करें, तो दक्षिण अफ्रीका की तुलना में यह टीम कहीं नहीं टिकती. विश्व स्तर का कोई भी तेज गेंदबाज भारत के पास नहीं है. श्रीनाथ-जहीर खान का विकल्प नहीं मिल पाया है. उमेश यादव, भुवनेश्वर कुमार और मोहम्मद शमी के प्रदर्शन में एकरूपता नहीं रही है. इन खिलाड़ियों को छोड़ भी दें, तो देश में उभरता हुआ ऐसा कोई तेज गेंदबाज नहीं दिखता, जिस पर आनेवाले दिनों में टीम इंडिया भरोसा कर सके. दुनिया की कोई भी टीम तेज गेंदबाजों के ऐसे संकट से नहीं जूझ रही है, जैसा भारत जूझ रहा है.

ऐसे में सारा ध्यान स्पिनरों की ओर जाता है. एक जमाना था जब भारत के पास बेदी, चंद्रशेखर, प्रसन्ना और वेंकट राघवन की जोड़ी तहलका मचाती थी. फिर कुंबले और हरभजन ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. आज अगर अश्विन को छोड़ दें, तो भारत के पास इस परंपरा का कोई स्पिनर भी नहीं है. एक गेंदबाज के बल पर आप मैच नहीं जीत सकते. भारत के समक्ष सबसे बड़ा संकट यही है. भले ही टीम इंडिया के पास कोहली, रहाणे, रोहित शर्मा जैसा ठोस बल्लेबाज हों, पर सिर्फ बल्लेबाजी के बल पर मैच जीता नहीं जा सकता.

सिर्फ गेंदबाजी ही संकट नहीं है. टीम इंडिया अगर मैच हार रही है, तो इसके पीछे टीम के भीतर की राजनीति भी शामिल है. यह दिखे या नहीं दिखे लेकिन खेमेबंदी ने टीम इंडिया को कमजोर किया है.

टी-20 या वन डे में कुछ खास खिलाड़ियों द्वारा लगातार रन नहीं बनाना इत्तिफाक नहीं हो सकता. कुछ खिलाड़ियों का झुकाव धौनी की ओर रहा है, तो कुछ का कोहली की ओर. चाहे खिलाड़ियों का चयन का मामला हो या आगे बढ़ाने का, भेदभाव साफ दिखता है.

ऐसी बात नहीं है कि पहले मतभेद नहीं होते थे. गावस्कर और बेदी के खेमे अलग-अलग होते थे (तब दिल्ली और मुंबई खेमा हुआ करता था जिनकी चलती थी). अगर अपवाद को छोड़ दें, तो कभी भी खेल पर इसका असर नहीं दिखता था. आज पूरी दुनिया में टीम इंडिया के प्रति नजरिया बदला है.

सौरभ गांगुली ने कप्तान के तौर पर यह साबित कर दिया था कि टीम अगर एकजुट है, तो दुनिया की किसी टीम को उसी की धरती पर हराया जा सकता है. गांगुली ने टीम को तराशा था. माना कि उस दौरान टीम में विश्व स्तर के खिलाड़ियों की संख्या ज्यादा थी. टीम में सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण, गांगुली, सेहवाग जैसे बल्लेबाज थे. लेकिन भारत की जीत का असली कारण टीम का उत्साह, मनोबल था, जिसमें आज कमी दिखती है.

अब समय आ गया है जब टीम इंडिया को फिर से तैयार किया जाये. गांगुली के बाद धौनी ने टीम इंडिया का मान बढ़ाया है. इसे और आगे ले जाने की जिम्मेवारी नयी पीढ़ी पर है, खास कर कोहली पर. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट आरंभ होनेवाला है.

अगर भारतीय क्रिकेट को आगे ले जाना है, तो यही वह समय है, जब लंबी योजना तैयार की जाये. खास कर नये तेज गेंदबाज तैयार किये जायें, उन्हें मौका दिया जाये. भारत में बल्लेबाजों का कभी संकट नहीं रहा है. अगर कमी रही है, तो तेज गेंदबाजों की. भारत में हो रहे मैचों में स्पिनरों के बल पर तो काम चलाया जा सकता है, लेकिन विदेशी विकेट पर तेज गेंदबाजी ही काम करती है, जिसमें भारत कमजोर है.अब टेस्ट में टीम इंडिया को एकजुट कर, बेहतर प्रदर्शन करने की मूल जिम्मेवारी कोहली पर है.

गुटबाजी में फंस कर किसी टीम का भला नहीं हो सकता, इस बात का ख्याल खिलाड़ियों को करना होगा. यह सही समय है, जब टीम इंडिया अपनी कमजोरी को पहचाने और भविष्य के लिए एक मजबूत टीम तैयार करे, जो लंबे समय तक वर्ल्ड क्रिकेट में अपना दबदबा बनाये रखे.

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