दीपावली में हो मिट्टी के दीयों का प्रयोग

प्रकाश का पर्व दीपावली का त्योहार कुछ ही दिनों में आनेवाला है. इसके आते ही घरों में रंग-बिरंगे बल्ब चमकने लगेंगे. साथ ही, देश के बाजारों में चीन की सस्ती लाइटें भी सजी हुई नजर आने लगेंगी, लेकिन क्या दीपावली के अवसर पर घरों को बिजली के बल्बों और सस्ती लाइटों से रोशन करना उचित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2015 12:56 AM
प्रकाश का पर्व दीपावली का त्योहार कुछ ही दिनों में आनेवाला है. इसके आते ही घरों में रंग-बिरंगे बल्ब चमकने लगेंगे. साथ ही, देश के बाजारों में चीन की सस्ती लाइटें भी सजी हुई नजर आने लगेंगी, लेकिन क्या दीपावली के अवसर पर घरों को बिजली के बल्बों और सस्ती लाइटों से रोशन करना उचित है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि सस्ती और सुलभ बिजली की लाइटों को खरीदने के चक्कर में लोग अपने ही देश का बुरा कर रहे हैं. सही मायने में यदि हम दीपावली के अवसर पर अपने घरों को मिट्टी के दीयों से जगमगाते, तो देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होने के साथ ही देश के लाखों लोगों को फायदा होता.
हमारे देश में प्राचीन काल से ही दीपावली के अवसर पर मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा है. इसके पीछे बहुत बड़ा अर्थशास्त्र छिपा है. वह यह कि यदि कोई बाजार में बिकनेवाले मिट्टी के दीये को खरीदता है, तो प्रत्यक्षत: उसका फायदा तो उस कलाकार को मिलता है, जो उन दीयों का निर्माण करता है.
इसका फायदा देश के हजारों-लाखों कलाकारों को मिलने के साथ ही अर्थव्यवस्था को मिलता है. जरा सोचें कि यदि कोई व्यक्ति मिट्टी के दीये खरीदने के बजाय दूसरे देशों से आयातित बिजली के बल्बों और लड़ियों को खरीदता है, तो उससे अर्जित राशि बहुराष्ट्रीय कंपनियों या फिर चीन जैसे देशों को मिलती है.
वहीं दूसरी ओर, यदि कोई व्यक्ति मिट्टी के दीयों को खरीदता है, तो देश का पैसा देश में ही रह जाता है और उससे कई दूसरे धंधे भी जुड़ जाते हैं. मान लीजिए कि किसी ने बाजार से दीया खरीदा, तो उसे जलाने के लिए रूई और सरसों का तेल या घी भी खरीदेगा.
अब गौर करें, तो एक दीया के खरीदने से दो अन्य कारोबारी भी आपस जुड़ जाते हैं. वहीं, बिजली के सामान खरीदने पर उससे सिर्फ वह कंपनी या देश जुड़ते हैं, जो उसके निर्माता होते हैं. बिजली की खपत होगी, वो अलग से.
-विवेकानंद विमल, पाथरौल, मधुपुर

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