मालदीव में अस्थिरता
हिंद महासागर में स्थित द्वीपीय देश मालदीव में आपातकाल लगाये जाने से राजनीतिक संकट और गहरा गया है. पिछले महीने की 24 तारीख को राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन गयूम के आदेश पर उपराष्ट्रपति अहमद अदीब को राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रपति तथा उनके परिवार की हत्या की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. पूर्व राष्ट्रपति […]
हिंद महासागर में स्थित द्वीपीय देश मालदीव में आपातकाल लगाये जाने से राजनीतिक संकट और गहरा गया है. पिछले महीने की 24 तारीख को राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन गयूम के आदेश पर उपराष्ट्रपति अहमद अदीब को राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रपति तथा उनके परिवार की हत्या की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.
पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद आतंकवाद फैलाने तथा सेना के दुरुपयोग के आरोप में कई महीनों से हिरासत में हैं. उनके मुकदमे में पारदर्शिता की कमी पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने लगातार चिंता जतायी है.
अब आपातकाल को वापस लेने के लिए भी अंतरराष्ट्रीय दबाव डाला जा रहा है. मौजूदा राष्ट्रपति के सौतेले भाई मामून अब्दुल गयूम के तीन दशकों के एकाधिकारवादी शासन की समाप्ति के बाद 2008 में बने संविधान के तहत बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद से ही इस देश में अस्थिरता का माहौल है. हालांकि सरकार ने कहा है कि आपातकाल महज 30 दिनों के लिए है, पर विश्लेषकों के मुताबिक यह राजनीतिक विरोधियों को दबाने की गयूम की कोशिशों की ही अगली कड़ी है.
उल्लेखनीय है कि यह घोषणा विपक्ष के प्रस्तावित प्रदर्शन से दो दिन पूर्व की गयी है तथा मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगा दी गयी हैं. विपक्ष ने राष्ट्रपति के तानाशाही रवैये और राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग के साथ रैली को पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप करने की घोषणा की है. देश के करीब 1,700 कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं.
पुलिस, सेना और प्रशासन में राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के आधार पर विभाजन के कारण देश में हिंसक संघर्षों की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. राजनीतिक अस्थिरता का असर मालदीव के पर्यटन उद्योग पर भी पड़ रहा है. वर्ष 2014 में 12 लाख पर्यटकों ने मालदीव की यात्रा की थी और देश की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का योगदान 29 फीसदी था. मालदीव की आबादी भले ही चार लाख से भी कम हो, पर सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से वह एक महत्वपूर्ण देश है.
इस देश की अस्थिरता दक्षिण एशिया के लिए भी चिंताजनक है, क्योंकि इससे वहां आतंकवाद और चरमपंथी गुटों को पैर पसारने के लिए माकूल जमीन मिल सकती है. जरूरी है कि भारत समेत दक्षिण एशिया के देश अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिल कर मालदीव में शांति और सुरक्षा की बहाली के साथ पारदर्शितापूर्ण लोकतंत्र की स्थापना में समुचित योगदान दें.