नवाचार को बढ़ावा
किसी भी समाज को प्रगति के लिए अपनी ताकत, कमजोरी और मौजूदा जरूरतों की पहचान करनी पड़ती है. इसके बिना प्रगति के सही उपाय कर पाना मुश्किल है. प्रधानमंत्री अकसर कहते हैं कि भारत की सबसे बड़ी ताकत यहां मौजूद मानव-संसाधन है और उन्होंने कई दफे याद दिलाया है कि युवा श्रमशक्ति के कौशल का […]
किसी भी समाज को प्रगति के लिए अपनी ताकत, कमजोरी और मौजूदा जरूरतों की पहचान करनी पड़ती है. इसके बिना प्रगति के सही उपाय कर पाना मुश्किल है. प्रधानमंत्री अकसर कहते हैं कि भारत की सबसे बड़ी ताकत यहां मौजूद मानव-संसाधन है और उन्होंने कई दफे याद दिलाया है कि युवा श्रमशक्ति के कौशल का उन्नयन भारत की प्रगति की कुंजी साबित हो सकता है.
चूंकि इस वक्त विश्व-व्यवस्था में प्रगति मूलत: प्रौद्योगिकी के विकास और विस्तार पर आधारित है, इसलिए कौशल-उन्नयन की कोई भी कोशिश प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचार के बिना अधूरी साबित होगी. इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने ‘इम्प्रिंट इंडिया’ नामक एक नयी परियोजना का शुभारंभ किया है, ताकि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध और नवाचार को बढ़ावा मिले.
फिलहाल इसके लिए 1000 करोड़ रुपये का आरक्षित कोष तय किया गया है और खूबी यह है कि नौकरशाही की बाधाओं से दूर एकल-खिड़की व्यवस्था के जरिये शोध की योजनाओं को मंजूरी मिलेगी. ‘इम्प्रिंट इंडिया’ का विजन भारत की प्रगति के जरूरी क्षेत्रों में स्वदेशी तकनीक के विकास और इस्तेमाल को बढ़ावा देना है.
प्रधानमंत्री ने इसी पक्ष की तरफ ध्यान खींचते हुए कहा है कि विज्ञान भले सार्वभौम हो, तकनीक तो स्वदेशी ही तैयार करने की जरूरत होती है. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विदेशों पर निर्भर रहना राष्ट्रहित में घातक है, यह बात साबित हो चुकी है. मसलन, अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में क्रायोजेनिक इंजन के विकास को ही लें. करीब दो दशक पहले जार्ज बुश (सीनियर) ने मिसाइल रोधी तकनीक के प्रसार पर नियंत्रण की नीति अपनायी और बिल क्लिंटन के वक्त में इसी नीति के कारण रूस के बोरिस येल्तिसिन के साथ अमेरिका की सहमति बनी कि रूस भारत को सात क्रायोजेनिक इंजन तो देगा, पर उसे बनाने की तकनीक नहीं देगा.
इससे भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम को धक्का पहुंचा. अच्छी बात यह भी है कि ‘इम्प्रिंट इंडिया’ परियोजना में रक्षा, ऊर्जा और जलवायु-परिवर्तन के साथ-साथ जल-संसाधन और नदियों के प्रवाह-तंत्र से संबंधित शोध और नवाचार की पहलों को भी शामिल किया गया है. यह खेती-किसानी की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
बहरहाल, हर शुरुआत अपने नतीजों की समीक्षा के लिए भी एक प्रणाली की मांग करती है. प्रधानमंत्री ने इससे पहले ‘स्किल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कई बहुचर्चित मिशनों की शुरुआत की है. शासन के डेढ़ साल बीतने पर इन पहलकदमियों से हासिल नतीजों की समीक्षा का भी वक्त आ गया है.