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जीवन के बाद भी उपेक्षा ही?

संपादक महोदय, यह बहुत ही दुखद है कि बात-बात पर बाल की खाल निकालनेवाला मीडिया राजस्थान में पूर्ण शराबबंदी और सशक्त लोकायुक्त की मांग को लेकर अनशन पर बैठे गुरचरण सिंह छाबड़ा की मौत पर चुप है. उनकी इस प्रकार की उपेक्षा से जागृत समाज को दुख हुआ. मीडिया और सरकार की बेरुखी को देख […]

संपादक महोदय, यह बहुत ही दुखद है कि बात-बात पर बाल की खाल निकालनेवाला मीडिया राजस्थान में पूर्ण शराबबंदी और सशक्त लोकायुक्त की मांग को लेकर अनशन पर बैठे गुरचरण सिंह छाबड़ा की मौत पर चुप है. उनकी इस प्रकार की उपेक्षा से जागृत समाज को दुख हुआ.
मीडिया और सरकार की बेरुखी को देख कर लोगों को बड़ी हैरानी हो रही है. लोग यह सोचने को मजबूर हैं कि आखिर हमारे देश में क्या हो रहा है? एक समाज सुधार की बात करनेवाले व्यक्ति को जीवन के बाद भी उपेक्षा का शिकार होना पड़ेगा? मीडिया की अपनी मजबूरी हो सकती है, लेकिन सरकार?
क्या सरकार उनकी मांग पर अमल नहीं कर सकती थी? यह सरकार की कुंभकर्णी नींद के चलते एक समाज सुधार नहीं रहा. सही मायने में देखा जाये, तो स्वर्गीय छाबड़ा की मांग नाजायज नहीं थी. वे एक राज्य में शराब पर पूर्ण पाबंदी और भ्रष्टाचार मिटाने की ही तो मांग कर रहे थे.
– वेद, मामूरपुर

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