लड़कियों को भी मिले चयन का हक
व्यक्ति अपनी जिंदगी में सबसे बड़ा फैसला जीवनसाथी चुनने के समय लेता है. उसका एक फैसला किसी परिवार को खुशहाल बना सकता है, तो किसी को दुखों के गर्त में धकेल देता है. यह विडंबना है कि सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के बाद भी देश के अधिकतर युवक-युवतियां अपने जीवन का अहम फैसला खुद नहीं करते. खासकर […]
व्यक्ति अपनी जिंदगी में सबसे बड़ा फैसला जीवनसाथी चुनने के समय लेता है. उसका एक फैसला किसी परिवार को खुशहाल बना सकता है, तो किसी को दुखों के गर्त में धकेल देता है. यह विडंबना है कि सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के बाद भी देश के अधिकतर युवक-युवतियां अपने जीवन का अहम फैसला खुद नहीं करते. खासकर लड़कियों के मामले में तो हमारा समाज और भी रूढ़ है.
हालांकि हमारे समाज में लड़कों को तो जीवन संगिनी चुनने का अधिकार है, लेकिन लड़कियों को यह हक नहीं. आखिर क्यों? यह अफसोस की बात है कि हमारा समाज बिना सोचे-समझे युवक-युवतियों को बिना किसी जान-पहचान के अजनबी के साथ बांध देता है. वह न तो लड़की और न ही किसी लड़के से उसकी इच्छा के बारे में पूछता है. बाद में नवविवाहित जोड़ों का मन और मत नहीं मिलता है, तो परिवार और समाज में क्लेश और कलह पैदा होते हैं.
दुख की बात यह है कि हमारे समाज में हर ओर से लड़कियों को ही दबाने का प्रयास किया जाता है. विवाह के बाद यदि परिवार में क्लेश पैदा होना शुरू होता है, तो दोष लड़की पर ही मढ़ा जाता है़ उसे हर ओर से उसकी आदत सुधारने की नसीहत दी जाती है, भले ही मामला कुछ भी हो. वास्तविकता जब सामने आती है, तो सभी अचंभित रह जाते हैं.
जब हमारे देश के संविधान में 18 वर्ष के युवा या युवती को नागरिक का दर्जा दे दिया जाता है, तो उसे जीवन साथी अथवा जीवन संगिनी चुनने का अधिकार क्यों नहीं दिया जाता. हमारे समाज में लड़कों को तो जीवन संगिनी चुनने का अधिकार मिला होता है, लेकिन इस मामले में भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है. जब देश बदल रहा है, तो हमारे समाज को भी बदलना होगा. लड़कियों को भी जीवन साथी चुनने का अधिकार देना होगा.
– सुधीर कुमार, गोड्डा