अर्थव्यवस्था पटरी पर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही दावा किया है कि उनके 17 महीने के कार्यकाल में अधिकतर आर्थिक सूचकांकों पर भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है और यह सरकार द्वारा किये गये प्रयासों का नतीजा है. सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वद्धि दर बढ़ी है, मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, विदेशी निवेश बढ़ा है और चालू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2015 5:01 AM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही दावा किया है कि उनके 17 महीने के कार्यकाल में अधिकतर आर्थिक सूचकांकों पर भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है और यह सरकार द्वारा किये गये प्रयासों का नतीजा है.
सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वद्धि दर बढ़ी है, मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, विदेशी निवेश बढ़ा है और चालू खाते का घाटा कम हुआ है. भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा के बारे में वैश्विक वित्तीय संस्थाएं भी आश्वस्त हैं. आर्थिक सुधारों को जारी रखने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि उनकी सरकार का उद्देश्य भारत में मूलभूत परिवर्तन लाना है.
निश्चित रूप से जन-धन योजना, नागरिक बीमा योजना आदि जैसी पहलों ने विकास को समावेशी स्वरूप दिया है तथा सामाजिक कल्याण तथा सशक्तीकरण की प्रक्रिया को अर्थव्यवस्था की गति के साथ जोड़ा है. व्यापारिक गतिविधियों के संचालन में सुगमता, सक्षमता और उत्तरदायित्व के बोध के गहरे होने के कारण निवेशकों और उद्योगों का विश्वास भी बढ़ा है. सड़क, परिवहन और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान देने से न सिर्फ घरेलू उद्योग को बल मिल रहा है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी विदेशी उद्योगों और वित्तीय संस्थाओं को आकृष्ट कर रही है.
ये आर्थिक उपलब्धियां भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत होने और उसके सही दिशा में बढ़ने के ठोस सबूत हैं. हालांकि तरक्की और खुशहाली का अहसास आम जनता तक ठीक से पहुंचे, यह भी सरकार को ही देखना होगा. खुदरा मुद्रास्फीति दर बढ़ने और प्रशासनिक चूक के कारण रोजमर्रा की चीजों की महंगाई पर नियंत्रण नहीं किया जा सका है, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
इंफ्रास्ट्रक्चर के लंबित मामले और बैंकों के फंसे कर्जे अर्थव्यवस्था की राह में बड़ी बाधाएं हैं. भूमि अधिग्रहण, श्रम सुधार, वस्तु एवं सेवा कर आदि से संबंधित कानूनों का पारित न हो पाना आर्थिक सुधारों के लिए बड़ी चिंता का सबब है. आर्थिक विकास के मामलों में सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच समुचित सहमति और सहकार के अभाव को दूर नहीं किया जा सका है.
संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में आर्थिक सुधार के कई महत्वपूर्ण कदमों पर निर्णय होना है, जिनके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में तालमेल जरूरी है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने के लिए राजनीतिक, प्रशासनिक और नीतिगत स्तर पर पर्याप्त और संतुलित सहभागिता आवश्यक है, जो सरकार के समक्ष एक सतत चुनौती है.

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