बेटे के नाम एक मां का खत

निवेदिता स्वतंत्र लेखिका आज तुम पूरे 25 साल के हो गये. मेरे बच्चे, तुम्हारा जन्म मेरी जिंदगी के सबसे हसीन पलों में से है. तुम आये और हमारी जिंदगी रंगों से भर गयी. एक नन्हा सा मेमना, काले, घने-घुंघराले बाल, और खाबिदा आंखें. मैं और बाबा तुम्हें देखते ही रह गये. सुबह का समय था. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2015 5:04 AM
निवेदिता
स्वतंत्र लेखिका
आज तुम पूरे 25 साल के हो गये. मेरे बच्चे, तुम्हारा जन्म मेरी जिंदगी के सबसे हसीन पलों में से है. तुम आये और हमारी जिंदगी रंगों से भर गयी. एक नन्हा सा मेमना, काले, घने-घुंघराले बाल, और खाबिदा आंखें. मैं और बाबा तुम्हें देखते ही रह गये. सुबह का समय था. हवा में खुनकी थी और आसमान खुला साफ था. पेड़ों के ऊपर सफेद धुंद के फाहे तिरते रहते थे.
वे दिन काफी मुश्किलों से भरे थे. देश में बाबरी मसजिद को लेकर काफी तनाव था. नफरत के बीज बोये जा चुके थे. नफरत के बीच तुम मुहब्बत का पैगाम बन कर आये. तुम्हारे लिए कई आंखों ने दुआएं मांगीं.
तुम्हारे जन्म के ठीक एक दिन पहले पहली बार हमारे मोहल्ले के मुसलमानों को अपना घर छोड़ना पड़ा. वे सब डरे हुए थे और इस बात से आहत कि अपने ही देश में बेगानों की तरह रहना पड़ रहा है. उस दिन सारे लोग मेरे और मेरे दोस्तों के घर में टिके हुए थे. औरतें डरी हुई थीं. पहली बार हमने जाना कि नफरत कैसे मनुष्यता को पीछे ले जाती है. मैं अपने बड़े से पेट में तुम्हें संभाले उन्हें यकीन दिला रही थी की वे डरें नहीं.
उनका बाल भी बांका नहीं होगा. पूरी रात आंखों में कट गयी. नफरत की आग ठंडी हुई, तो वे अपने-अपने घर गयीं. जब तुम्हारा जन्म हुआ, तो वे औरतें तुम्हें दुआएं दे रही थीं. तुम्हारी बलाइयां ले रही थीं. हम और बाबा तुम्हारे नाम के बारे में सोच रहे थे. सचमुच, वह बड़ी प्यारी रात थी. तुम मेरे सीने से लगे सो रहे थे. सब कुछ इतना शांत, इतना नीरव था कि नीचे सड़कों पर बस सुन्न-सन्नाटे की आहट ही सुनाई देती थी.
हम दोनों तुम्हारे नाम की खोज कर रहे थे. घर के कुछ लोग चाहते थे कि तुम्हारा नाम हिंदी में हो, कुछ लोग उर्दू में रखना चाहते थे. मुझे दुख हो रहा था कि अपने देश में नाम भी हिंदू-मुसलमान होते हैं, यहां तक की जानवर और सब्जियां भी.
हमने सोचा ऐसा नाम रखें, जिससे किसी धर्म का बोध न हो. तुम्हारे बाबा और मुझे रूस के महान कवि पुश्किन बहुत पसंद थे. जिनके बारे में कहा जाता है कि वे मिली-जुली नस्ल की संतान हैं और प्रेम की खातिर मारे गये. हमने तुम्हारा नाम पुश्किन रखा, जिनकी नज्में दुनिया में प्रेम के लिए जानी जाती हैं. आज ये कैसा संयोग है कि इतने बरसों के बाद देश को फिर नफरत की आग में झोंकने की तैयारी हो रही है.
मेरे बच्चे तुम्हारी पीढ़ी पर यह जिम्मेवारी है कि इस नफरत के खिलाफ खड़े हो. मनुष्यता के पक्ष में खड़े हो. मुझे पता है कि तुम्हारे लिए मनुष्यता को बचाये रखना सबसे अहम है. मेरे बच्चे, तुम एक खूबसूरत नौजवान हो, जिंदगी से लबरेज. तुम जीते रहो. हम सब मिल कर यकीनन दुनिया को मनुष्य के जीने लायक बनायेंगे. अगर तुम पास होते, तो तुम्हारा माथा चूम लेती. पर कोई बात नहीं, जहां रहो खुश रहो. तुम्हारी जिंदगी में बेशुमार रंग हों… खूब सारा प्यार……
महसूस कर सकती हूं तुम्हारे भीतर हो रहे बदलाव को. उस हवा को भी, जो तुमको छूकर गुजरती है. पहचानती हूं उस बहाव को जहां से शुरू होती है सपनों की धरती फूट पड़ने को आतुर. तुम्हारे पास जिंदगी के नये अनुभव हैं. मेरे पास अनुभवों से गुजरते हुए जीवन की यादें और गाथाएं हैं.
फिर क्यों लगता है कि हम दोनों दो युगों की तरह हैं. क्या कोई राह है, जो एक-दूसरे से मिलती हों? उठो, अगुआई करो और भर लो इस सृष्टि को. सौंपती हूं तुम्हें अतीत के सपने, पूर्वजों की आवाज, क्योंकि नये समय में जरूरत होगी तुम्हें. हो सकता है आनेवाले समय में तुम नहीं देख सको, ये जंगल, ये पहाड़, ये धरती और बसंत का खिलना.
जब उजली धुली सुमद्र की लहरें नहीं कर रही हों तुम्हारा आलिंगन, जब नहीं सुन सको हवाओं में देवदार के गीत, तब तुम याद करना पूर्वजों को, जो दे गये हैं घने जंगल का रहस्यमयी स्वर, नगाड़ों की थाप, बसंत के हसीन सपने… ये सब बुरे और पराजित समय में भी तुम्हारा साथ देंगे. यह समय पूंजी का है. पूंजी जहां होती है, वहां नहीं होते सपने.
सपने और भूख की लगेगी बोली, जब धरती-आकाश सब होगा उनके नियंत्रण में. नहीं बचेगा महान सभ्यता का कोई अवशेष. जहां नहीं होगी पैरों के नीचे ठोस जमीन. नहीं होगा सात रंगों से सजा आसमान. यदि तुम रोक सको तो रोकना. अपनी पूरी ताकत से, पवित्र विचार से.
यह दुनिया हमारी है. हमारी यादों और जीवन से लबरेज, धरती-सा स्पंदित हमारा हृदय, हमारी आत्मा. सौंपती हूं तुम्हें, सौंपती हूं मुक्ति का स्वप्न. यह गीत तुम्हें ही गाने होंगे. कहना होगा, जलो जलो पुरातन पृथ्वी, नक्षत्र, सौरमंडल जलो. जल अतल जलो…

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