मोदी-मॉडल के खिलाफ है यह जनादेश

बिहार देश का मॉडल राज्य बन सकता है. जाित-भेद, वर्ण-भेद से उठ कर एक स्वस्थ, नैतिक, धर्मनिरपेक्ष और सच्चे लोकतंत्र की ओर िबहार अग्रसर हो सकता है. लालू-नीतीश यह काम कर सकते हैं… देश में फिलहाल केवल बिहार में सांप्रदाियक शक्तियों को रोकने की ताकत है. बि की राजनीितक चेतना किसी भी राज्य की तुलना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 9, 2015 7:17 AM

बिहार देश का मॉडल राज्य बन सकता है. जाित-भेद, वर्ण-भेद से उठ कर एक स्वस्थ, नैतिक, धर्मनिरपेक्ष और सच्चे लोकतंत्र की ओर िबहार अग्रसर हो सकता है. लालू-नीतीश यह काम कर सकते हैं…

देश में फिलहाल केवल बिहार में सांप्रदाियक शक्तियों को रोकने की ताकत है. बि की राजनीितक चेतना किसी भी राज्य की तुलना में कहीं अिधक है़. बिहार में बिहारी अिस्मता को चुनौती देनेवाली ताकतों को इस चुनाव में सीख िमली है़. आडवाणी के रथ और मोदी की विजय-यात्रा को बि ने ही रोका है़. 1977 में बि ने लोकतंत्र और तानाशाही के बीच लोकतंत्र का चयन िकया़ बि आंदोलन तानाशाही और िनरंकुशता के विरुद्ध लोकतंत्र की ससम्मान वापसी के लिए था़. उस समय जेपी आंदोलन के दो युवा नेताओं ने अपने समस्त मतभेदों को भुला कर एक साथ होकर मोदी की अहम्मन्यता, भाजपा और संघ के हिंदुत्व के विरुद्ध जागरूक मतदाताओं को एकजुट कर न केवल बि की अिस्मता की रक्षा की है, विपक्ष को एकजुट होकर दक्षिणपंथी शक्तियों के उस मंसूबे पर फिलहाल पानी फेर िदया है, िजसमें ववििधता को नष्ट कर भारतीय संस्कृित को हिंदुत्व में सीिमत करने की कोिशशंे की जा रही थीं.

नीतीश-लालू की एकता की सार्थकता इस चुनाव परिणाम में सबको िदखाई देगी़. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बि विधानसभा चुनाव मंे 27 जनसभाएं की थीं. 20-22 हेलीकॉप्टर प्रचार के िलए मौजूद थे. कई राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, भाजपा के सांसद बि में आ जुटे थे. आरएसएस के कार्यकर्ताओं के घर पर पहुंच रहे थे. मतदाताओं ने िकसी की नहीं सुनी और महागंठबंधन को जीत िदलायी. एेसा कैसे हुआ? साधन-संपन्नता की दृिष्ट से महागंठबंधन राजग के सामने कुछ भी नहीं था. बिहार में मोदी की हार एक बड़ी घटना है. बि में एकता सांप्रदाियक सद्भाव, आपसी भाईचारा और लोकतंत्र की जीत हुई है़. बि के मतदाताओं ने जिस प्रकार छल-छंद, फुसलावे, झूठ, विकास के गलत लुभावने वादे, सांप्रदाियक वैमनस्य और झूठ की संस्कृित के विरुद्ध राजनीतिक परिपक्वता का परिचय िदया है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए. आजाद भारत में बि में दक्षिणपंथी शक्तियां कहां थीं? भाजपा कब से इस राज्य में प्रमुख हुई? बि वामपंिथयों, समाजवािदयों और लंबे समय तक कांग्रेिसयों का गढ़ रहा है़. 1977 में पहली बार बिहार की साठ प्रतिशत िपछड़ी जाितयां चुनाव में महत्वपूर्ण हुईं. लालू की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने उसे हािशये से ऊपर उठाया. उसे शक्ति दी, आवाज दी. भाजपा ने प्रत्येक जाित में अपनी पैठ कायम की, लेिकन उसकी विचार-दृिष्ट िपछड़ों, दिलतों, अल्पसंख्यकों और आिदवािसयों के पक्ष में कभी नहीं रही. धर्म और संप्रदाय की राजनीित के साथ विकास के मोदी-माॅडल को भी बि के मतदाताओं ने खारिज कर दिया है.

बिहार का चुनाव परिणाम विकास के उस दानवी माॅडल के भी िखलाफ है, िजसमें कृिष और िकसान की न केवल अनदेखी हुई है. केवल बि का विकास ही नहीं, भारत का विकास भी कृिष और िकसान की बलि देकर नहीं िकया जा सकता़. प्रधानमंत्री पद की गरिमा को िजस प्रकार मोदी ने मटियामेट िकया, यह जनादेश उस गरिमा को नष्ट करने के भी विरुद्ध है़. मोदी का जवाब केवल लालू ही दे सकते थे़. मोदी ने लालू को मुख्य शत्रु के रूप में िचह्नित कर बार-बार जंगलराज की याद िदलायी. लालू ने उन्हें शैतान कहा, तो माेदी ने उन्‍हें ब्रह्मपिशाच कहा. बाजार अर्थव्यवस्था ने अपने प्रश्न में, बाजार के पक्ष में जो राजनीित विकसित की, उसमें छवियां महत्वपूर्ण हैं. इस चुनाव की एक बड़ी खूबी यह रही िक इसने मोदी के प्रचार-तंत्र की अनदेखी न कर विज्ञापन, नारे और स्लोगन की अहिमयत समझी. ‘आगे बढ़ता रहे बि, िफर एक बार नीतीशे कुमार’ और ‘बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो’ के साथ ‘गरीब की आवाज है लालू, हम सबकी परवाज है लालू’ में जहां एक ओर विकास प्रमुख था, वहीं दूसरी ओर गरीबों और िपछड़ांे की िचंता करनेवाला नायक भी था़.

बिहार चुनाव का यह परिणाम मोदी, भाजपा और संघ की विचारधारा के िखलाफ है़. भाजपा तीसरे स्थान पर आ गयी है. याद रहे िक 1990 में उसे 39, 1995 में 41, 2000 में 39, 2005 में 55 और 2010 में उसे 91 सीटें मिली थी़ं. अब वह 2010 में प्राप्त सीटों से बहुत पीछे जा चुकी है. बिहार में भारतीय जनसंघ और भाजपा का आगमन बहुत बाद में हुआ. राजद और कांग्रेस को पिछले दो चुनावों की तुलना में कहीं अिधक सीटें मिली हैं. बिहार के मतदाताअों ने भारतीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के साथ कवियों, लेखकों, कलाकारों, वैज्ञािनकों, बुिद्धजीवियों का भी साथ िदया है़. इस जनादेश को केवल जाित, धर्म और विकास की वर्तमान राजनीित के साथ ही जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. बिहार के 6.6 करोड़ मतदाताओं में युवा मतदाताओं की संख्या 30 प्रतिशत थी़, जो बहकावे में नहीं आये. डेढ़ वर्ष के भीतर बि के मतदाताओं ने अपने को लोकसभा चुनाव से अलग िकया़. तब मोदी की लहर थी़. िजस प्रकार आडवाणी की रथ-यात्रा लालू ने रोक दी थी, उसी प्रकार लालू-नीतीश की जोड़ी ने मोदी लहर को रोक दिया है़.

मोदी-नीतीश कभी क्षेत्रीय और प्रांतीय नेता नहीं रहे़ राष्ट्रीय राजनीति में, केंद्र में उनकी बड़ी भूिमका रही है़. अब लालू की, जैसा कि वे कह भी चुके हैं, भूमिका राज्य में सीमित नहीं रहेगी. बिहार में कांग्रेस की स्थिति अब कहीं बेहतर है. इस चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या लगभग 6 प्रतिशत बढ़ी है़. महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति आरएसएस की सोच गलत है. बिहार में ये सम्मािनत है़ं. इस जीत में नीतीश का चुनाव प्रचार अभियान देखनेवाले प्रशांत किशोर की भी महती भूमिका है. मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान ने भी एनडीए को नुकसान पहुंचाया और लालू की राष्ट्रीयता राजनीति में पुनर्वापसी हो रही है. नीतीश-लालू पर बिहार और देश दोनों की जिम्मेवारी है. बिहार देश का मॉडल राज्य बन सकता है़. जाति-भेद, वर्ण-भेद से उठ कर एक स्वस्थ, नैितक, धर्मिनरपेक्ष और सच्चे लोकतंत्र की ओर बि अग्रसर हो सकता है. लालू-नीतीश यह काम कर सकते हैं, जो श्री कृष्ण िसंह और अनुग्रह नारायण सिंह के कार्यों से भी आगे जा सकता है़. बि की जनता के साथ अब देश की जनता भी इन दोनों की ओर देखेगी, इनसे अपेक्षाएं करेगी- बि िनर्माण के साथ भारत-िनर्माण की भी.

रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
delhi@prabhatkhabar.in

Next Article

Exit mobile version