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सबक लेगी भाजपा?

भारतीय लोक परंपरा में कहावत है कि सुबह का भूला जब शाम को घर लौट आता है, तो उसे भूला नहीं कहते. लेकिन, इसे यदि चुनावी जय-पराजय के आईने में देखें, तो अकसर पार्टियां अपनी हार के वास्तविक कारणों से मुंह चुराती नजर आती हैं. अपनी गंभीर गलतियों पर गौर करने की बजाय, इसका ठीकरा […]

भारतीय लोक परंपरा में कहावत है कि सुबह का भूला जब शाम को घर लौट आता है, तो उसे भूला नहीं कहते. लेकिन, इसे यदि चुनावी जय-पराजय के आईने में देखें, तो अकसर पार्टियां अपनी हार के वास्तविक कारणों से मुंह चुराती नजर आती हैं. अपनी गंभीर गलतियों पर गौर करने की बजाय, इसका ठीकरा फोड़ने के लिए कुछ ऐसे कारण गढ़ने का प्रयास करती हैं, जो या तो हकीकत का सिर्फ एक पहलू होता है या हकीकत से दूर होता है.

बिहार चुनाव के नतीजों के दिन शुरुआत में कुछ न्यूज चैनलों की मेहरबानी के चलते भाजपा जब बढ़त बनाती दिखी, तो कई नेता पटाखे फोड़ने के उतावलेपन को छिपा नहीं सके. लेकिन, चंद मिनटों बाद जब जनादेश की हकीकत सामने आयी तो नेताओं के ऐसे बोल सामने आने लगे, जिनमें जनादेश के आदर या इससे सबक लेने का भान कतई न था. जनादेश पर नकारात्मक टिप्पणी करते हुए पार्टी के एक नेता ने यहां तक कह दिया कि बिहार के लोग फिर से जातीय समीकरण के जाल में फंस गये. लेकिन, गौर करें तो रामविलास पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ गंठबंधन कर और जाति-आधारित सम्मेलनों में हिस्सा लेकर खुद भाजपा ने जातीय समीकरण साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.

यहां तक कि पार्टी के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी जाति और खुद को दलित बताना जरूरी समझा. यह किसी से छिपा नहीं है प्रधानमंत्री के चेहरे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनावी कौशल को जीत के लिए पर्याप्त माननेवाली भाजपा ने अभियान में सहयोग के लिए भी स्थानीय नेताओं से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों पर भरोसा जताया. लेकिन, हार के बाद पार्टी के एक महासचिव ने राज्य के दो ऐसे नेताओं पर धोखा देने का आरोप मढ़ा, जिसे पार्टी ने जनाधारविहीन मान कर शुरू में ही चुनावी अभियान से किनारे कर दिया था. फिर विकास के मुद्दे से शुरू हुआ चुनाव प्रचार हर चरण के साथ बदलते हुए आरक्षण के रास्ते कब ध्रुवीकरण और बदजुबानी तक पहुंच गया पता ही नहीं चला.

हालांकि, नतीजे के एक दिन बाद हार का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़नेवाले बयानों के बीच, भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर मंथन का दौर भी शुरू हो गया है. इस सिलसिले में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने संसदीय दल की बैठक से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर लंबी चर्चा की. उम्मीद है कि पार्टी बिहार के जनादेश से निकले संदेश को ठीक से पढ़ेगी और अपनी रणनीति में जनआकांक्षाओं के अनुरूप गुणात्मक बदलाव के प्रयास करेगी.

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