एक तरफ बढ़ती महंगाई से जनता त्रस्त है, तो दूसरी तरफ सरकार राजकोषीय घाटे का रोना रो रही है. रिजर्व बैंक को लगता है कि मुद्रास्फीति बढ़ी हुई है, इसलिए वह सूद की दर बढ़ा रही है, जबकि देश में मंदी छाई हुई है.
निजी क्षेत्र के कर्मचारियों का या तो महीनों से वेतन लंबित है या उनकी छंटनी हो रही है. नये प्रोजेक्ट नहीं आ रहे हैं. जनता दिग्भ्रमित है. उसे पता नहीं चल रहा है कि क्या सही है और क्या गलत. सरकार कहती है कि भारत को विदेशी व्यापार में घाटा हो रहा है, खास कर पेट्रोलियम और सोने के आयात से.इसके चलते हमारा विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा है. नतीजतन, डॉलर के मुकाबले रुपया दिनों दिन कमजोर हो रहा है.
जब परिस्थिति ऐसी आ गयी है, तो सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए. सिर्फ आम जनता से टैक्स के नाम पर धन उगाही से काम नहीं चलेगा. सरकार को अपने खर्च पर अंकुश लगाना होगा. सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की सालाना वेतन वृद्धि कुछ सालों के लिए स्थगित कर देनी चाहिए.
विदेश यात्रा पर होनेवाले खर्च कम करने होंगे. सांसदों और विधायकों के भत्ते–वेतन में कटौती करनी चाहिए. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की भरपूर कोशिश करनी पड़ेगी. सरकार लाखों–करोड़ों के घाटेवाले काम करती है और मामला उजागर होने पर निंदनीय रूप से इसे दलगत मुद्दा बना दिया जाता है. ये सब सीधे–सीधे देश को लूटने का प्रयास है.
आम जनता को भी अपना कर्तव्य समझना होगा. हमें चीजों की बेवजह बरबादी रोकनी होगा. पेट्रोलियम का उपयोग कम करना होगा. निजी वाहनों के बजाय हमें सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे हमारे देश को भी फायदा होगा.
चक्र पाणि सिंह, मेकॉन वाटिका, हटिया