आधुनिकता की मार लोक-कलाकृति पर

बचपन के खेल में भारतीय बालिकाओं का रुझान रसोईघर की ओर अधिक होता है, जबकि बालक गाड़ी और बंदूक से खेलना अधिक पसंद करते हैं. आज से करीब एक दशक पहले दिवाली के मौके पर अभिभावक अपनी बालिकाओं के लिए मिट्टी के बने बर्तन खेलने के लिए खरीदते थे. समय बदला, तो बर्तन बनानेवाले पदार्थ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 14, 2015 5:48 AM
बचपन के खेल में भारतीय बालिकाओं का रुझान रसोईघर की ओर अधिक होता है, जबकि बालक गाड़ी और बंदूक से खेलना अधिक पसंद करते हैं. आज से करीब एक दशक पहले दिवाली के मौके पर अभिभावक अपनी बालिकाओं के लिए मिट्टी के बने बर्तन खेलने के लिए खरीदते थे. समय बदला, तो बर्तन बनानेवाले पदार्थ भी बदल गये. अब मिट्टी के स्थान पर प्लास्टिक के किचन सेट खिलौने आने लगे और मिट्टी के बर्तन भारतीय बालिकाओं के खेल से दूर होते गये़
इसका दुखद पहलू यह भी है कि बाजार से मिट्टी के बर्तन दूर होने से उनके निर्माता की आमदनी पर कुठाराघात हुआ है. इससे उन्हें रोजी-रोटी चलाने के लिए अन्य साधन अपनाने पड़ रहे हैं. आधुनिकता के माहौल में हमारी लोक-कलाकृति को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
-रामकृष्ण आद्या, बेरमो

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