बालश्रम की कैद में गुम होता बचपन
भारत में बालश्रम के कारण अनचाहे रूप से करोड़ों बच्चों का बचपन तबाह हो रहा है. विडंबना यह है कि इसके खात्मे की दिशा में सभी स्तरों पर इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है. इसी का नतीजा है कि आज देश में 14 वर्ष से कम उम्र के लगभग दो करोड़ बच्चे अवैध रूप से प्रतिबंधित […]
भारत में बालश्रम के कारण अनचाहे रूप से करोड़ों बच्चों का बचपन तबाह हो रहा है. विडंबना यह है कि इसके खात्मे की दिशा में सभी स्तरों पर इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है. इसी का नतीजा है कि आज देश में 14 वर्ष से कम उम्र के लगभग दो करोड़ बच्चे अवैध रूप से प्रतिबंधित स्थानों पर काम कर रहे हैं.
भारतीय समाज में देश के भविष्य के रूप में देखे जानेवाले बच्चों के शोषण की यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 24 के अंतर्गत ‘बालश्रम उन्मूलन’ और 21(क) के तहत निहित ‘शिक्षा के अधिकार कानून’ का मुंह चिढ़ा रहा है. बालश्रम को बढ़ावा देने में सरकारी नीतियों की शिथिलता का जितना दोष है, उतना ही दोष भारतीय समाज में वर्षों से व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी व अशिक्षा जैसी समस्याओं का भी है. अगर सरकार बालश्रम को प्रोत्साहन देनेवाले इन कारकों से मुक्ति का प्रयास करती है, तो बालश्रम पर बहुत हद तक लगाम लगाया जा सकता है. अभिभावकों से भी अपेक्षा की जाती है कि आर्थिक मजबूरियों को अपने बच्चों पर हावी न होने दें.
अपने बच्चे को बेहतर परवरिश देकर उसके शिक्षा व स्वास्थ्य की व्यवस्था करें, ताकि वह शिक्षित होकर अपने अधिकारों को जान सके तथा राष्ट्र-कर्तव्यों का पालन कर एक सफल नागरिक की भूमिका निभा सके. जिस उम्र में बच्चे को खिलौने और स्लेट-पेंसिल की आवश्यकता होती है, उसमें उसे ढाबे, होटल, ईंट-भट्ठों या औद्योगिक संयंत्रों पर किसी भी कीमत पर न भेजें.
अभिभावक जितने जागरूक होंगे, स्थिति उतनी ही नियंत्रण में होगी. यही बालश्रम उन्मूलन का मूलमंत्र है. यदि हम देश के नौनिहालों के बाल्यावस्था को सुरक्षित कर लेते हैं, तभी जाकर वह भविष्य में चाचा नेहरू व कलाम साहब के सपने को साकार कर पायेगा.
-सुधीर कुमार, गोड्डा