समाजवादियों ने अपना घर जोड़ लिया
चंचल सामाजिक कार्यकर्ता पटना देखने का मन है… अचानक पटना कहां से आ गया? पटना देखे का मन इसलिए बना है कि बहुत दिनों बाद देश का जवान जनतंत्र बिहार में तन कर खड़ा हुआ है… जवान जनतंत्र? तो ऐसा बोलो कि गांधी मैदान का जलसा देखने का मन है… ना बरखुरदार, बहुत जलसा देख […]
चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
पटना देखने का मन है… अचानक पटना कहां से आ गया? पटना देखे का मन इसलिए बना है कि बहुत दिनों बाद देश का जवान जनतंत्र बिहार में तन कर खड़ा हुआ है… जवान जनतंत्र? तो ऐसा बोलो कि गांधी मैदान का जलसा देखने का मन है… ना बरखुरदार, बहुत जलसा देख चुका हूं. जनता का मन देखने का मन है. आज है चौदह नवंबर.
क्या! चौदह नवंबर? कयूम मियां चौंके. मियां भले वक्त पर याद दिला दिया वरना बहुत बड़ा गुनाह हो जाता. आज जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है. कयूम मियां ने अपने मझले लड़के सोहराब को आवाज दी. नवल उपाधिया जाते-जाते रुक गये, क्योंकि साइकिल की चेन उतर गयी रही.
नवल ने सोहराब से मदद मांगी कि चेन चढ़ा दो, लेकिन कयूम ने रोक दिया- कत्तई नहीं. पहले जरूरी काम सुन लो, बक्से में से अचकन, पजामा, गांधी टोपी… सब निकाल लाओ, हम नहा के आते हैं. दालान में लगी नेहरू की तसवीर को साफ कर डालो… और तहमत संभालते कयूम मियां नहाने चले गये.
थोड़ी देर बाद लबे-सड़क मौलाना अबुल कलाम आजाद चले आ रहे हैं. पीछे-पीछे बच्चे भारत माता की जय बोल रहे हैं और चाचा नेहरू की जय हो रही है. कयूम मियां जब इस सुराजी लिबास में उतरते हैं, तो जनता उन्हें मौलाना आजाद बना देती है. कयूम मियां को बच्चे-बूढ़े-जवान सबका आदाब, जय हिंद, सलाम मिल रहा है. और मियां चौराहे तक आ गये.
लाल्साहेब की चाय की दुकान पर जमी मजलिस ने कयूम मियां का स्वागत किया. नीम के पेड़ के नीचे पंडित नेहरू की तसवीर तने से सटा कर लगा दी गयी. कयूम मियां ने सलामी दी. राष्ट्रगान हुआ और सबने एक-एक कर के तसवीर पर फूल चढ़ाये. लेकिन चिखुरी ने फूल नहीं चढ़ाया, बंदी के चोर खीसे में हाथ डाल कर एक घुंडी सूत निकाले और उसे फैला कर नेहरू की तसवीर पर चढ़ा दिये. चिखुरी ने बच्चों के लिए बतासा मंगाया.
इस तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को गांव ने याद किया…
नवल ने डोर ढील दी- चचा कयूम का मन है पटना देखने का. उस जलसे को देखना चाहते हैं, जिसमें नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. मद्दू पत्रकार ने बीच में टोक दिया- क्या कयूम मियां, अब जमाना कहां जा पहुंचा है, घर बैठे रहिए, टीवी खोल लीजिए और देखिए पटना, नीतीस्साब आपके सामने.
कयूम ने लंबी सांस ली- नहीं भाई! हम नेता को देखने की ललक नहीं रखते, हम तो बिहार की जनता और उसके चेहरे को देखना चाहते हैं कि वह क्या चाहती है इस सरकार से. गांव के सदन में सन्नाटा छा गया. चिखुरी मुस्कुराये, बोले- बिहार में यह पहला प्रयोग हुआ है कि गांधी का बिखरा हुआ परिवार 48 साल बाद एक हुआ है.
नीतीश, लालू, शिवानंद समेत तमाम समाजवादी अपने पुराने घर को जोड़ने में सफल हुए हैं. आंख बंद कर देखिए तो जब सोनिया, लालू और नीतीश एक मंच पर थे, तब लग रहा था कि यह पंडित नेहरू, जेपी और डॉ लोहिया का मंच है. यह तो हुई काया की बात, अब इसकी आत्मा को जगाना है. तीनों मिल कर तीन बिंदु तय करें. ये तीनों पंडित नेहरू और डॉ लोहिया के बीच हुई सहमति के प्रमुख बिंदु हैं.
बिहार देश को डगर दिखाए कि अब सरकार और संगठन दो अलहदा संस्थान हैं. जो सरकार में होंगे, वे संगठन में कोई ओहदा नहीं रखेंगे. संगठन को पूरा अधिकार होगा कि वह सरकार की आलोचना कर सके और उसकी गलत नीति के खिलाफ आवाज उठा सके. संगठन का जनता से सीधे संवाद होगा और उसकी समस्या को सरकार और संगठन मिल कर हल करेंगे…
भिखई मास्टर ने इसमें लेकिन लगाया- बिहार में बेरोजगारी, पिछड़ापन, खराब सड़कें, महंगाई आदि का क्या होगा? चिखुरी संजीदा हो गये- सबका इलाज है. बेरोजगारी इसलिए है कि बिहार में रोजगार नहीं है. रोजगार के लिए बिहार सरकार और जनता मिल कर लड़ें. जो उत्पाद छोटी जगहों से, छोटी पूंजी से शुरू हो सकते हैं, लेकिन उस पर बड़े घरानों का कब्जा है, जनता उसका बहिष्कार करे.
बिहार के नौजवानों को प्रोत्साहित किया जाये, गांव-गांव लघु उद्योग खुलें. पूरा देश देख रहा है, बदले हुए चेहरों को नहीं, उन नीतियों को, जो कल बिहार शुरू करेगा… महफिल संजीदा न हो, इसलिए नवल ने मुंह खोल दिया. असल हकदार तो महिलाएं हैं, जिन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और जमूरों को रास्ता दिखाया. मन्नाडे को सुना जाये… काशी हीले, पटना हीले…