पारा शिक्षकों के साथ खिलवाड़ क्यों?
कुछ दिनों पहले अखबार में यह खबर आयी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने सौ दिनों का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सबको काफी खुशी हुई. और हो भी क्यों न? आखिर झारखंड जैसे राज्य में यह सफलता बैसाखी के सहारे मैराथन जीतने से कम नहीं है. आज पारा शिक्षक के रूप में हमने भी […]
कुछ दिनों पहले अखबार में यह खबर आयी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने सौ दिनों का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सबको काफी खुशी हुई. और हो भी क्यों न? आखिर झारखंड जैसे राज्य में यह सफलता बैसाखी के सहारे मैराथन जीतने से कम नहीं है.
आज पारा शिक्षक के रूप में हमने भी अपने जीवन के 3287 दिनों का बहुमूल्य कार्यकाल पूरा कर लिया है. इन नौ वर्षो के सफर में हमने कई मुख्यमंत्रियों के वादे और योजनाएं देखीं. किसी ने मानदेय बढ़ाने की बात कही, तो किसी ने यह भी कह दिया कि पारा-शिक्षक स्थायी रूप से रखने के योग्य नहीं है. परंतु आज हजारों ऐसे पारा-शिक्षक हैं, जिनके पास न सिर्फ उच्च शैक्षणिक योग्यताएं हैं, बल्किवे प्रशिक्षित एवं टेट (शिक्षक पात्रता परीक्षा) उत्तीर्ण भी हैं. उनके पास लंबे समय का कार्यानुभव भी है, फिर भी यह कैसी विडंबना है कि हमारा भविष्य आज भी दावं पर लगा हुआ है.
माणिक मुखर्जी, कांड्रा