कागज पर सिमटा जल संरक्षण
हमारा देश एक बार फिर जल संकट से जूझ रहा है. देश के कई राज्यों से सूखे तथा पानी की भारी किल्लत के समाचार आ रहे हैं. प्रदूषण का बढ़ता स्तर, सूखते जलस्रोत, प्रदूषित होती नदियां, निर्ममतापूर्वक पेयजल की बरबादी जैसे अनगिनत तथ्य ऐसी सूचनाओं को पुख्ता कर रहे हैं. परंतु मीठे पानी की बरबादी […]
हमारा देश एक बार फिर जल संकट से जूझ रहा है. देश के कई राज्यों से सूखे तथा पानी की भारी किल्लत के समाचार आ रहे हैं. प्रदूषण का बढ़ता स्तर, सूखते जलस्रोत, प्रदूषित होती नदियां, निर्ममतापूर्वक पेयजल की बरबादी जैसे अनगिनत तथ्य ऐसी सूचनाओं को पुख्ता कर रहे हैं. परंतु मीठे पानी की बरबादी की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. देश के हर छोटे-बड़े शहर में बने वाहनों के सर्विस सेंटर में प्रतिदिन पीने योग्य पानी का जम कर दुरु पयोग होता है. वहीं घरों में गाड़ी और फर्श चमकाने के नाम पर अमूल्य पानी व्यर्थ बहाया जाता है, लेकिन इस बरबादी पर चर्चा न के बराबर होती है.
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 को अंतरराष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष घोषित किया है. यह वर्ष खत्म होने में महज दो महीने ही बचे हैं, लेकिन जल संकट रोकने के लिए कुछ नहीं हुआ. राज्य सरकार ने भी पानी की बरबादी रोकने के लिए कई अभियान चलाये, लेकिन यह सब कागजों पर ही सिमटता सा प्रतीत हो रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि 2050 से पहले ही देश में जल संकट विकराल रूप ले सकता है. उस समय उपलब्धता के मुकाबले पानी की मांग बहुत ज्यादा हो जायेगी और मांग व आपूर्ति के भीषण अंतर को पाटना आसान नहीं होगा.
शहरों में पानी बेचने में लगा जल माफिया इस किल्लत का फायदा उठा कर पानी के टैंकर दूर-दराज जगहों पर ले जाकर मुंहमांगे दामों पर उसे बेच रहा है. अब सवाल उठना लाजिमी है कि इस समस्या का वास्तव में जिम्मेवार कौन है? क्या सिर्फ सरकार को जल बरबादी का दोषी ठहरा कर हम अपनी जिम्मेदारियों से बच सकते हैं? कहीं न कहीं पानी की बरबादी के लिए हम सभी बराबर के जिम्मेदार हैं. अब भी समय है, आइए जल संरक्षण पर मिल कर सोचें.
सुधीर कुमार, दुमका