झाड़ू, बाहरी कचरा और मतिमारी बम

।। मो जुनैद ।।(प्रभात खबर, पटना) सुबह-सुबह कर्कश आवाज कानों में पड़ी. ए भाई! जरा देख के चलो. आगे ही नहीं, पीछे भी. दायें ही नहीं, बायें भी. ऊपर ही नहीं, नीचे भी.. एकबारगी ख्याल आया कि शायद मन्ना डे को कोई बेसुरा इनसान श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है या फिर 1970 में आयी फिल्म […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2013 3:17 AM

।। मो जुनैद ।।
(प्रभात खबर, पटना)

सुबह-सुबह कर्कश आवाज कानों में पड़ी. ए भाई! जरा देख के चलो. आगे ही नहीं, पीछे भी. दायें ही नहीं, बायें भी. ऊपर ही नहीं, नीचे भी.. एकबारगी ख्याल आया कि शायद मन्ना डे को कोई बेसुरा इनसान श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है या फिर 1970 में आयी फिल्म मेरा नाम जोकर देख कर भावुक हो रहा है. फिर सोचा, हो सकता है कि कुछ बम, पटाखे मिस कर जाते हैं, लेकिन बाद में फूटते हैं और राहगीरों व गरीबों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए सावधान किया जा रहा है.

धीरे-धीरे यह आवाज ‘नये-नये चौकीदार’ की तरह जागते रहो.. की तर्ज पर बहुत करीब आयी. मजबूरन बिस्तर से उठ कर घर से निकला. देखता हूं कि चिलमन हाथ में झाड़ू लेकर चौराहेपर खड़ा है. मैं बोला- हाथ में झाड़ू लेकर गला क्यों फाड़ रहे हो? चिलमन ने जवाब दिया, इधर-उधर यानी बाहर का कचरा साफ करना है. सुशासन बाबू की बात सुन कर घर से जोश के साथ निकला, लेकिन चौराहे पर आकर कन्फ्यूज हो गया कि किधर का कचरा साफ करूं और किस तरह का कचरा साफ करूं. हर तरफ, हर किस्म का कचरा नजर आ रहा है.

मैं बोला- भाई चिलमन! गंदगी घर के अंदर है और सफाई करोगे बाहर? चिलमन बोला- यह बाह्य सौंदर्य का जमाना है. बाहरी चमक-दमक पर ही हर कोई फिदा है. नमो गुजरात दंगे के पीड़ितों के आंसू नहीं पोंछ पाये. दंगे में पूरे परिवार को खो देनेवाले किसी मासूम को गोद नहीं ले पाये, क्योंकि घर की मुरगी दाल बराबर. लेकिन बिहार में लाव-लश्कर के साथ आंसू पोंछने में कामयाब रहे. आपको पता है कि मेरी बीवी कल कह रही थी कि निठल्ले! दिन भर इधर-उधर मारे फिरते हो. क्यों नहीं रैली, मार्च या जुलूस में जाते हो? हो सकता है कि कोई हादसा हमारी किस्मत का दरवाजा खोल दे. फिर अहो भाग्य हमारे कि लाव-लश्कर संग मोदी हमारे घर पधारें. मैंने समझाया कि डार्लिग! वोट की फसल की अभी बोआई हो रही है. खाद-पानी के लिए आगे-आगे देखो होता है क्या?

वैसे कुछ हादसे के बाद से तो कचरे से बहुत डर लगने लगा है. न जाने किस वेश में ‘मतिमारी बम’ मिल जाये. मैं बोला यह कौन-सा बम है? चिलमन बोला- भाई ! इसलिए तो गला फाड़ रहा हूं कि हर तरफ देख के चलो. कौन किस रंग-रूप में है पता ही नहीं चलता है. धमाके के बाद बाप को पता चलता है कि बेटा मतिमारी बम का शिकार था. नेता जी को खबर नहीं कि भतीजा कब, कैसे इसकी गिरफ्त में आया. युवाओं के दिल-दिमाग में मतिमारी बम प्लांट किया जा रहा है. इसे कौन, कब, कहां और क्यों प्लांट कर रहा है, इसे कैसे डिफ्यूज किया जाये, इस पर कहीं कोई बहस नहीं हो रही है. बस बहस छिड़ी है कि पटेल हमारे या तुम्हारे. उनकी मूर्ति पर राजनीति गरम है. झाड़ू व कचरे पर कोहराम मचा है.

Next Article

Exit mobile version