गौरव का क्षण, पर लंबा सफर है बाकी
मंगल से भारत का नाता सदियों पुराना है. पुराणों और महाभारत में मंगल ग्रह का जिक्र आया है. भारत ने अब इस मंगल की ओर अपने कदम बढ़ा दिये हैं. मंगलवार को जब आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-25 पर सवार मंगलयान अपने लगभग 300 दिनों के मंगल के […]
मंगल से भारत का नाता सदियों पुराना है. पुराणों और महाभारत में मंगल ग्रह का जिक्र आया है. भारत ने अब इस मंगल की ओर अपने कदम बढ़ा दिये हैं. मंगलवार को जब आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-25 पर सवार मंगलयान अपने लगभग 300 दिनों के मंगल के सफर की ओर रवाना हुआ, तो एक तरह से भारत सदियों पुराने अंतरिक्ष से अपने रिश्ते को नये सिरे से परिभाषित कर रहा था.
मंगल ग्रह का यह अभियान कितना चुनौतीपूर्ण है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि धरती से मंगल की यात्र पर निकले आधे से भी कम अभियान सफल रहे हैं. चीन और जापान का मंगल अभियान असफलताओं की फेहरिस्त में शामिल है. ऐसे में अगर भारतीय अंतरिक्ष संगठन- इसरो, अपने पहले मंगल अभियान में सफल रहा, तो यह न सिर्फ पूरे विश्व में भारत के मान-सम्मान को बढ़ायेगा, बल्कि एक उभरती हुई शक्ति के तौर पर हमारे आत्मविश्वास में भी इजाफा करेगा. लेकिन, मंगल की कक्षा तक भारतीय सपनों की राह सुगम नहीं है.
अभी मंगलयान ने अपने पहले चरण में ही प्रवेश किया है और वह दीर्घवृत्ताकार पथ में पथ्वी का चक्कर लगा रहा है. 25 दिनों के बाद, यानी 1 दिसंबर को इसे मंगल की ओर मोड़ा जायेगा. असल चुनौती इसी चरण से शुरू होगी. दुनिया के ज्यादातर मंगल अभियान इसी चरण में, खासकर मंगल की कक्षा के करीब आने पर ‘दुर्भाग्य’ का शिकार हुए हैं. हम अंतरिक्ष में भारत की संभावित बड़ी छलांग पर उत्साहित जरूर हों, लेकिन यहीं हमें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की दुखती रग पर भी हाथ रखना चाहिए. यह दुखती रग है- क्रायोजेनिक इंजन व उससे चालित जीएसएलवी.
जीएसएलवी की गैरमौजूदगी में मंगल यान को पीएसएलवी से छोड़ा गया है, जिसकी पेलोड वहन क्षमता काफी कम है. यही वजह है कि मंगलयान में सीमित संख्या में ही उपकरण लगाये जा सके हैं. क्रायोजेनिक इंजन विकसित न कर पाने के कारण हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम ठहर गया है और हम आज भी भारी संचार उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए विदेशों पर आश्रित हैं. ऐसे में मंगल अभियान को अंतरिक्ष नापने की भारतीय कोशिशों का एक और अध्याय कहा जा सकता है, उपलब्धियों का सर्वोच्च शिखर नहीं.