भाजपा को आत्ममंथन की दरकार

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार मिली़. 2010 विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुल 91 सीटें मिली थीं जबकि 2015 में मात्र 53 सीटें ही भाजपा बिहार में जीत पायी़ इस हार का प्रभाव आने वाले समय में अन्य राज्यों में भी पड़ेगा़ भाजपा को 2014 लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला जिससे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 20, 2015 1:28 AM

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार मिली़. 2010 विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुल 91 सीटें मिली थीं जबकि 2015 में मात्र 53 सीटें ही भाजपा बिहार में जीत पायी़ इस हार का प्रभाव आने वाले समय में अन्य राज्यों में भी पड़ेगा़ भाजपा को 2014 लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला जिससे भाजपा कांग्रेस के बाद अपने बल पर लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी लेकिन पहले दिल्ली और अब बिहार में पूरी तरह से मात खाने के बाद भाजपा को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है़.

बिहार विधानसभा चुनाव में हार की मुख्य वजह पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं करना रहा, जिससे पार्टी मजबूत नेतृत्व वाली सरकार देने का विश्वास जनता को नहीं दिला यी. कोई ऐसा चेहरा प्रधानमंत्री के अलावा लोगों के सामने नहीं था, जिसकी लोकप्रियता पर जनता का विश्वास जीता जा सके़ दूसरी वजह पार्टी का अन्य सहयोगी दलों पर अत्यधिक विश्वास कर उनके लिए अधिक सीटें छोड़ना है, जो उसकी आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाये.

तीसरा कारण आरक्षण को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान है, जिससे पार्टी से एक विशेष समूह नाराज हो गया और विपक्षी को बयान को लेकर हंगामा मचाने का मौका मिल गया़ चौथा कारण बीफ को लेकर बवाल था, जिससे पार्टी को सबसे अधिक क्षति हुई. पांचवां कारण पार्टी के नेताओं की अमर्यादित बयानबाजी थी, जिसमें मुद्दे कम और विपक्षी पर निशाना ज्यादा था. इन सब कारणों के अलावा भाजपा के खिलाफ एक सशक्त नेतृत्वकर्ता नीतीश कुमार का सुसाशन भी था, जिनकी छवि का मुकाबला कोई और नेता नहीं कर पाया़ बहरहाल, भाजपा को चाहिए कि वह अपने प्रचार तंत्र पर आत्ममंथन करे और बेतुकी बयानबाजी पर लगाम लगाये.

प्रताप तिवारी, ई-मेल से

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