15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कोई इस कल्लू कबाड़ी की सुनेगा!

।। जावेद इस्लाम।।(प्रभात खबर, रांची)रद्दीवाला! ..कबाड़ीवाला! – यह कल्लू कबाड़ी की हाक थी. वह हाक लगाते हुए मेरे घर के सामने से गुजरा, तो मेरी नजर घर में बेकार पड़े पुराने अखबारों के जखीरे से जा टकरायी. मैंने कल्लू को रुकने के लिए आवाज लगायी. वह अपने बोरे–थैले के साथ दरवाजे पर हाजिर हो गया. […]

।। जावेद इस्लाम।।
(प्रभात खबर, रांची)
रद्दीवाला! ..कबाड़ीवाला! – यह कल्लू कबाड़ी की हाक थी. वह हाक लगाते हुए मेरे घर के सामने से गुजरा, तो मेरी नजर घर में बेकार पड़े पुराने अखबारों के जखीरे से जा टकरायी. मैंने कल्लू को रुकने के लिए आवाज लगायी. वह अपने बोरेथैले के साथ दरवाजे पर हाजिर हो गया. रद्दी अखबारों को छांटतेतोलते उसने बातों के बीच रद्दी की खरीद दर मेरे सामने उछाल दी.

भाव सुन कर मुङो जोर का झटका जोर से ही लगा. इस रद्दी से कुछ रकम की आमद की मेरी उम्मीद सेंसेक्स की तरह धड़ाम हो गयी. मेरे दिल में शेयर बाजार की तरह हलचल मचने लगी. मेरे मुंह से निकला, ‘‘अभी एकदो महीने पहले ही तो..’’ मेरा यह विस्मयबोधक वाक्य पूरा होता, इससे पहले ही कल्लू ने जवाब टिका दिया, ‘‘एकदो महीने की बात तो कीजिए ही नहीं सर, यहां रद्दी का रेट शेयर बाजार की तरह आज अर्श पर, तो कल फर्श पर होता है.’’ ‘‘तुम हमें ठग रहे हो कल्लू’’मैंने थोड़ा कड़े लहजे में कहा. लेकिन, वह हड़कने की जगह उपहास से बोला‘‘आप रद्दी बेच रहे हैं, कोई डॉलर नहीं. यह रद्दी है साहब, आलू, प्याज या टमाटर नहीं!’’ फिर बोला‘‘वैसे भी आजकल अखबारोंरिसालों की औकात ही क्या रह गयी है. नेताओं के उगालदान बन गये हैं. बयानों की उल्टी तो बारहों महीने चलती रहती है. इधर पिछले कुछ दिनों से इतिहास की उल्टियों का ऐतिहासिक दौर शुरू हो गया है. नेहरूपटेल, चंद्रगुप्त मौर्यचंद्रगुप्त द्वितीय सहित जाने किसकिस पर ऐतिहासिक उल्टियां की जा रही हैं. कोई इस किताब का हवाला दे रहा है, तो कोई उस किताब की सनद. अखबार के न्ने गंधा रहे हैं.’’

कल्लू अचानक मुझसे सवाल कर बैठा, ‘‘आप पत्रकार लोग इन चुनावबाज नेताओं को 2014 का आम चुनाव इतिहास की इन्हीं उल्टियों के घोषणापत्र पर लड़वाने की योजना बनवाये हुए हैं क्या? क्या कभी हम जैसे करोड़ों गरीबों की रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा का मुद्दा भी चुनावी मुद्दा बनेगा?’’ कल्लू कबाड़ी होकर भी समझदारी की बात कर रहा था, पर मेरा ध्यान तो रद्दी के भाव पर टंगा हुआ था. इसलिए उसकी बात पर ज्यादा गौर नहीं कर सका. वैसे भी इस महान लोकतंत्र में गरीबों की बात को तवज्जो कौन देता है? मैं कल्लू से जिरह पर उतर आया, ‘‘हर चीज का दाम दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा है, मगर एक तुम कहते हो कि रद्दी का घट रहा है?’’ कल्लू तुर्की-ब-तुर्की बोला, ‘‘मैंने कब कहा कि हर रद्दी का भाव घट रहा है. अगर इस रद्दी कागज को छोड़ दें, तो यह जमाना ही है रद्दी का. राजनीति में रद्दी लोगों का भाव आसमान छू रहा है. हां, अखबारी रद्दी की तरह एक और चीज की कीमत घटी है. वह है गरीब का खून-पसीना. न तो भाजपा के ‘शाइनिंग इंडिया’ में इसका कोई मोल था और न ही कांग्रेस के इस ‘इमजिर्ग इंडिया’ में रह गया है.’’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें