आपसी लेन-देन से ही जरूरतें पूरी होंगी
आलू को लेकर झारखंड और पश्चिम बंगाल के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है. इस बार प्राकृतिक कारणों से आलू, प्याज की उपज कम हुई है. ऐसे में इनके दाम तेजी से चढ़ रहे हैं. दाम बांधने के लिए बंगाल सरकार ने अपने राज्य से सफेद आलू बाहर जाने पर रोक लगा दी है. इस […]
आलू को लेकर झारखंड और पश्चिम बंगाल के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है. इस बार प्राकृतिक कारणों से आलू, प्याज की उपज कम हुई है. ऐसे में इनके दाम तेजी से चढ़ रहे हैं. दाम बांधने के लिए बंगाल सरकार ने अपने राज्य से सफेद आलू बाहर जाने पर रोक लगा दी है. इस कारण झारखंड-बिहार में आलू की कीमत बढ़ गयी है. ऐसे में इन राज्यों के लोगों पर महंगाई की मार और बढ़ गयी है. अब बंगाल सरकार के इस कदम के जवाब में झारखंड सरकार ने दो-टूक कहा है कि हम भी बंगाल में हरी सब्जियों को नहीं जाने देंगे.
झारखंड के मुख्यमंत्री का यह जवाब नकारात्मक नहीं है. वह इन बातों के जरिए यह संकेत देना चाह रहे हैं कि सभी राज्य एक-दूसरे के पूरक हैं. सिर्फ अपना स्वार्थ देखने से काम नहीं चलनेवाला. इसलिए बंगाल सरकार को अपने कदम पर पुनर्विचार करना चाहिए. राज्यों की प्राकृतिक विभिन्नता व जलवायु के कारण हर राज्य में अलग-अलग खाद्य पदार्थो का उत्पादन कम-अधिक होता है. ऐसे में राज्य एक -दूसरे से खाने-पाने की चीजें लेकर अपने यहां आपूर्ति को सुचारु बनाये रखते हैं. लेकिन अभी जो हो रहा है वह कतई ठीक नहीं है. इससे किसानों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. किसानों को सही कीमत के लिए बाजार चाहिए. अगर सरकारें राज्यों की सीमाबंदी कर देती हैं, तो किसानों को एक सीमित बाजार ही मिल पायेगा. किसानों को जहां सही कीमत नहीं मिल पायेगी, वहीं व्यापारी इस अभाव का फायदा उठायेंगे.
जमाखोरी, कालाबाजारी बढ़ेगी. इससे अंतत: आम लोग परेशान होंगे. एक तरफ भारत और पड़ोसी देशों के बीच खाद्य पदार्थो की आवाजाही बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ पड़ोसी राज्य बेगानों जैसा रवैया अपनायें यह दु:खद लगता है. भारत से पाकिस्तान को टमाटर निर्यात किया जाता है. वहीं पाकिस्तान से मिर्च आती है. अभी प्याज की बढ़ती कीमत रोकने के लिए अफगानिस्तान से प्याज आयात किया गया. वर्तमान में भारत के राज्यों के बीच जो हो रहा है, उसे रोकने लिए केंद्र को पहल करनी चाहिए. ऐसी नीति तय करनी चाहिए, जिससे कोई भी राज्य अपने यहां उत्पादित खाद्य पदार्थ को रोक नहीं सके. अगर झारखंड सरकार अपने यहां के खनिज पदार्थो को बाहर जाने से रोक दे, तो देश का क्या होगा?