वेतनवृद्धि का तोहफा

केंद्र सरकार के 47 लाख कर्मचारियों और 52 लाख पेंशनभोगियों के लिए निश्चय ही यह खुशखबरी और नये साल का तोहफा है. सातवें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन, भत्तों एवं पेंशन में अच्छी वृद्धि की सिफारिश की है. इसमें न्यूनतम वेतन 18 हजार, जबकि कैबिनेट सचिव के समकक्ष अधिकारियों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 21, 2015 12:57 AM
केंद्र सरकार के 47 लाख कर्मचारियों और 52 लाख पेंशनभोगियों के लिए निश्चय ही यह खुशखबरी और नये साल का तोहफा है. सातवें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन, भत्तों एवं पेंशन में अच्छी वृद्धि की सिफारिश की है. इसमें न्यूनतम वेतन 18 हजार, जबकि कैबिनेट सचिव के समकक्ष अधिकारियों के वेतन ढाई लाख रुपये प्रतिमाह करने की सिफारिश है. ये सिफारिशें जनवरी, 2016 से लागू होने और इससे वित्त वर्ष 2016-17 में खजाने पर 1.2 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त बोझ बढ़ने की संभावना है.

अब आर्थिक मामलों के जानकार हिसाब-किताब लगा रहे हैं कि कर्मचारियों की आय बढ़ने पर बाजार में किन-किन चीजों की मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में कितनी मजबूती आयेगी. लेकिन, इससे इतर भी कुछ बातों पर गौर करने की जरूरत है. बढ़ती महंगाई के मद्देनजर यह उचित है कि सरकार हर दस साल बाद एक नया वेतन आयोग बनाये. छठे वेतन आयोग का गठन तीन साल की देरी से जुलाई, 2006 में हुआ था, जिसकी सिफारिशें 2008 में आयी, पर जनवरी, 2006 से लागू हुई थीं. इससे खजाने पर दो साल के बकाये का अतिरिक्त बोझ पड़ गया था. इसलिए यूपीए सरकार ने अपने अंतिम दिनों में सातवें वेतन आयोग का समयपूर्व गठन कर दिया था. लेकिन, वेतनवृद्धि के साथ कर्मचारियों को परफॉर्मेंस पर आधारित प्रोत्साहन देने की एक सुविचारित व्यवस्था की जरूरत भी लंबे समय से महसूस की जा रही है, जिससे उन्हें अधिक जवाबदेह एवं उत्पादक बनाया जा सके, पर सरकारें इस पर विचार करने से कतराती रही हैं.

यह भी ध्यान रहे कि देश में मौजूद कुल नौकरियों में से करीब 85 फीसदी असंगठित क्षेत्र में हैं, जहां ज्यादातर कर्मचारियों को मजदूरी या सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं मिल पाती. देश की बड़ी आबादी खेती पर आश्रित है, पर किसानों को भी आय की कोई गारंटी नहीं है.

किसानों की दशा पर विचार के लिए बने स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी कि हर फसल पर लागत से ड्योढ़ा दाम दिया जाये, पर यूपीए सरकार ने इसे नजरअंदाज कर दिया था. पिछले आम चुनाव में भाजपा ने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में जरूर शामिल किया, पर मोदी सरकार ने भी इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट को बता दिया कि वह लागत का ड्योढ़ा दाम देने पर विचार नहीं कर रही. जरूरी है कि सरकार किसानों, मजदूरों और असंगठित क्षेत्र में कार्यरत करोड़ों लोगों की आय बढ़ाने के तौर-तरीकों पर भी ध्यान दे, वरना समाज में आयगत असमानता की चौड़ी होती खाई से विकास की राह मुश्किल बनी रहेगी.

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