मरीजों की जान से खिलवाड़ की छूट!

झारखंड में नकली दवाओं का कारोबार फल–फूल रहा है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग की छवि जगजाहिर है. यहीं दवा घोटाले हुए. छिटपुट कार्रवाई भी हुई, लेकिन अंतिम निष्कर्ष नहीं निकल पाया. इसका फायदा चिकित्सा विभाग के बड़े अधिकारियों से लेकर ड्रग इंस्पेक्टर तक उठा रहे हैं. नकली दवाओं की बिक्री के बारे में कई दफा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2013 4:17 AM

झारखंड में नकली दवाओं का कारोबार फलफूल रहा है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग की छवि जगजाहिर है. यहीं दवा घोटाले हुए. छिटपुट कार्रवाई भी हुई, लेकिन अंतिम निष्कर्ष नहीं निकल पाया. इसका फायदा चिकित्सा विभाग के बड़े अधिकारियों से लेकर ड्रग इंस्पेक्टर तक उठा रहे हैं.

नकली दवाओं की बिक्री के बारे में कई दफा सूचनाएं मिलती रही हैं, पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती है. नतीजतन थोक खुदरा दवा कारोबारी मोटे मुनाफे के लिए लोगों के जीवन से खिलवाड़ करते रहे हैं. इन दुकानदारों को यह छूट किसने दी? राज्यभर में लगभग 14 हजार थोक खुदरा दवा दुकानें हैं, जबकि मात्र 10 दवा निरीक्षक हैं.

इस कारण यहां ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट का उल्लंघन खुलेआम होता है. झारखंड में हमेशा ऐसी खबरें आती रही हैं कि कैसे दवा दुकानों से भारी उगाही की जाती है. बावजूद इसके अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. हाल ही में राज्यभर से 270 नमूनों की लैब में जांच हुई, जिसमें 53 दवाएं बेकार निकलीं यानी ये बेअसर हैं.

वहीं 42 दवाएं नकली निकलीं, जो जानलेवा भी हो सकती है. यहां की गरीब जनता जैसेतैसे कर्ज लेकर अपनों के इलाज के लिए दवा खरीदती है. उनको क्या पता कि जो दवाएं वे खरीद रहे हैं, उसका उसके मरीज पर कोई असर नहीं पड़नेवाला है. यह हाल तो हुआ निजी दवा दुकानों का.

झारखंड में सरकारी अस्पतालों में बंटनेवाली कई दवाएं भी बेकार होती हैं. अभी कुछ दिन पहले देवघर सदर अस्पताल को आपूर्ति की गयी दवाओं में से दो दवाएं जांच में बेकार निकलीं. आपूर्तिकर्ता कंपनी पर कार्रवाई भी हुई. लेकिन सवाल है कि ऐसा होता क्यों है? जीवनरक्षक दवाओं में नकली दवा की आपूर्ति नहीं हो सके, इसके लिए ठोस कार्रवाई की जरूरत है. पूरे राज्य में दवा का 1100 करोड़ रुपये का कारोबार है. सरकार को इस व्यवसाय से अच्छे राजस्व की प्राप्ति होती है.

दवाओं की जांच करने के लिए राज्य में दोतीन जगहों पर ही लैब है. नकली गुणवत्ताहीन दवाओं की बिक्री हो, इसके लिए सरकार को एक मजबूत निकाय बनाना चाहिए. दवा दुकानों के लाइसेंस देने के लिए जो मापदंड बनाये गये उसमें पूरी पारदर्शिता की जरूरत है. सिर्फ मुनाफे के लिए गलत लोगों को दवा बेचने का अधिकार नहीं है.

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