बनी हुई है विकास की गहरी खाई

रेटिंग और रिसर्च फर्म क्रिसिल ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर भारत के राज्यों की समृद्धि, समानता और प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से एक सूची बनायी है. एक अंगरेजी अखबार ने रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि देश के राज्यों में समृद्धि के हिसाब से पंजाब पहले पायदान पर खड़ा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2013 4:21 AM

रेटिंग और रिसर्च फर्म क्रिसिल ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर भारत के राज्यों की समृद्धि, समानता और प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से एक सूची बनायी है. एक अंगरेजी अखबार ने रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि देश के राज्यों में समृद्धि के हिसाब से पंजाब पहले पायदान पर खड़ा है.

समानता के पैमाने पर केरल नंबर एक पर है, तो प्रति व्यक्ति आय की कसौटी पर महाराष्ट्र पहले स्थान पर है. पहली नजर में इस रिपोर्ट के परिणाम चौंकानेवाले नहीं कहे जा सकते. लेकिन अगर ऐसी रपटों के परिणाम चौंकाने को मजबूर करें, तो कई सवालों का उठना लाजिमी है.

क्रिसिल की रिपोर्ट के कुछ परिणाम अमीरगरीब राज्यों के पुराने समीकरणों में कोई तोड़फोड़ नहीं करते. मिसाल के लिए समृद्धि सूचकांक में नीचे के पांच राज्यों में मध्य प्रदेश, बिहार, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल का नाम है, तो प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार, ओड़िशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड की स्थिति बेहाल है.

क्या यह भारत में तरक्की के मामले में दशकों की असमानता को पुनस्र्थापित नहीं करता? ऐसे समय में जब देश में विकास मॉडलों पर बहस तेज है, यह सवाल पूछना लाजिमी है कि आखिर विकास के तमाम दावों और आंकड़ों के बावजूद पिछड़े हुए राज्य, अगड़े राज्यों से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं?

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य पिछले कुछ वर्षो से औसत से कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, फिर भी 2011 की जनगणना से प्राप्त उपभोक्ता सामानों की मिल्कियत के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गयी इन सूचियों में ये राज्य आज भी सुस्त रफ्तार से तरक्की करते दिख रहे हैं.

इसका सबसे बड़ा कारण पिछड़े राज्यों को विरासत में मिली अर्थव्यवस्था का छोटा आकार माना जा सकता है. सवाल है कि आखिर असंतुलन के इस पैटर्न को भंग करने का क्या रास्ता हो सकता है? क्या कोई ऐसी युक्ति है, जो विकास के दौर में पीछे छूटे राज्यों को संपन्न राज्यों के बराबर खड़ा कर सके? असमानता के अंधेरे को मिटाने के लिए आज समरूप विकास की ऐसी नीतियों के निर्माण की जरूरत पर बल देने की जरूरत है. इसकी पहल सिर्फ राज्य के स्तर पर ही नहीं, केंद्र के स्तर पर भी करनी होगी.

Next Article

Exit mobile version