सचेत रहना जरूरी

पिछले कुछ समय से संवैधानिक और उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा आपत्तिजनक बयान देने का सिलसिला चल पड़ा है. रिपोर्टों की मानें, तो असम के राज्यपाल पीबी आचार्य ने कहा है कि भारत हिंदुओं का देश है और दुनिया के किसी भी हिस्से से हिंदू भारत में आकर शरण ले सकते हैं. यह भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 23, 2015 1:11 AM

पिछले कुछ समय से संवैधानिक और उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा आपत्तिजनक बयान देने का सिलसिला चल पड़ा है. रिपोर्टों की मानें, तो असम के राज्यपाल पीबी आचार्य ने कहा है कि भारत हिंदुओं का देश है और दुनिया के किसी भी हिस्से से हिंदू भारत में आकर शरण ले सकते हैं.

यह भी कि अगर कोई भारतीय मुसलमान भारत में प्रताड़ित महसूस कर रहा है, तो वह पाकिस्तान या बांग्लादेश जा सकता है. हालांकि अब उन्होंने इन रिपोर्टों का खंडन कर दिया है, पर जिम्मेवार लोगों को कोई भी बात सोच-समझ कर कहनी चाहिए, ताकि उसका अनर्थ न हो सके. मीडिया को भी ऐसी बातें बिना समुचित पुष्टि के नहीं रिपोर्ट करनी चाहिए. क्योंकि इनके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं. हमारा संविधान देश में रह रहे प्रत्येक नागरिक को समान मानता है और उनमें धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि आधारों पर किसी भेदभाव की अनुमति नहीं देता. कुछ दिन से असहिष्णु बातें और गतिविधियां बढ़ी हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक को सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि भारतीय समाज में असहिष्णुता के लिए कोई स्थान नहीं है.

बड़ी संख्या में रचनाकारों और बुद्धिजीवियों ने भी सामाजिक सद्भाव को नष्ट करने के प्रयासों पर चिंता व्यक्त की है. भारतविदों की एक गोष्ठी में राष्ट्रपति ने भारत के उन उदात्त आदर्शों और मूल्यों को रेखांकित किया है जो हमारी संस्कृति का आधार हैं. उन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के प्राचीन दर्शन से लेकर करुणा और समानता के विराट सभ्यतागत परंपरा का उल्लेख किया. जो लोग इन मूल्यों से इतर समाज में वैमनस्य और विभेद का वातावरण बनाना चाह रहे हैं, उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि खुद को संस्कारी कहनेवाले ऐसे तत्वों के संस्कार किस सांस्कृतिक परंपरा से ढल कर निकले हैं.

अपने खतरनाक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्र और धर्म की आड़ लेनेवाले इन विध्वंसकारियों का ठोस प्रतिकार जरूरी है. इसकी जिम्मेवारी सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायालयों और बुद्धिजीवियों की नहीं है, बल्कि अब हर नागरिक को वैसे लोगों, समूहों और संगठनों के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए, जो समावेशी भारतीय संस्कृति और संवैधानिक प्रस्थापनाओं को नष्ट कर देश में कलह, द्वेष और हिंसा का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों, बुद्धिजीवियों तथा पत्रकारों को भी अपने कर्तव्यों को गंभीरता से निभाने का प्रयास करना चाहिए. उनके गैरजिम्मेवाराना व्यवहार से देश की एकता और विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

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