आसियान से आशाएं
मलयेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित आसियान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया है. हालांकि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान में दस सदस्य देश- इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम हैं, परंतु चीन, रूस, अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और […]
आसियान की चर्चाओं में भी इन मसलों की प्रमुखता रही. प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत स्पष्टता और विश्वास के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रही बेहतरी का उल्लेख किया और आसियान देशों को भारत में अधिकाधिक निवेश का आमंत्रण दिया. उल्लेखनीय है कि आसियान समूह भारत का चौथा सबसे बड़ा और आसियान के लिए भारत छठा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. पिछले वित्त वर्ष में द्विपक्षीय व्यापार 76.52 बिलियन डॉलर का रहा था, जिसमें भारत का निर्यात 31.81 बिलियन और आयात 44.71 बिलियन डॉलर का था. दोनों पक्षों के बीच मौजूदा समय में वाणिज्यिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ाने के लिए विभिन्न समझौतों पर चर्चा जारी है. इस सम्मेलन की एक विशिष्ट उपलब्धि यह रही है कि आसियान समूह ने औपचारिक रूप से एक आर्थिक समुदाय बनाने की घोषणा की है, जिसकी समेकित अर्थव्यवस्था 2.57 ट्रिलियन डॉलर की है. जानकारों की राय में यूरोपीय संघ से भी बड़े आकार के इस आर्थिक संघ से भारत को लाभ मिलने की आशा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा सैन्यीकरण किये जाने पर सवाल खड़ा करते हुए अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय समझौतों के अनुरूप चलने की बात कही है. भारत और इस क्षेत्र के हितों के मद्देनजर इस विवादित मसले को रेखांकित करना जरूरी कूटनीतिक पहल है. इस मुद्दे पर सिंगापुर और जापान ने भी चीन की आलोचना की है. एशिया में आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के लिए परस्पर विश्वास और सुरक्षा का माहौल होना बहुत जरूरी है. उम्मीद है कि चीन आस-पड़ोस और अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखते हुए अपने रुख में बदलाव करेगा, ताकि व्यापक आर्थिक सहयोग को और ऊंचाई दी जा सके.