सहिष्णुता की बात कीजिए

इन दिनों एक शब्द की काफी चर्चा है. इसे हिंदी में असहिष्णुता और अंगरेजी में एनटॉलरेंस कहते हैं. असहिष्णु यानी जो सहिष्णु न हो. सहिष्णु, एक गुण है. गुण का विलोम तो अवगुण ही होगा न! इसी तरह सहिष्णु का विलोम असहिष्णु ही होगा. कहते हैं कि गुणी लोग आसानी से नहीं मिलते. तो क्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 26, 2015 1:34 AM

इन दिनों एक शब्द की काफी चर्चा है. इसे हिंदी में असहिष्णुता और अंगरेजी में एनटॉलरेंस कहते हैं. असहिष्णु यानी जो सहिष्णु न हो. सहिष्णु, एक गुण है. गुण का विलोम तो अवगुण ही होगा न! इसी तरह सहिष्णु का विलोम असहिष्णु ही होगा. कहते हैं कि गुणी लोग आसानी से नहीं मिलते. तो क्या ऐसे गुणी आसानी से मिलते हैं, जो सहिष्णु हैं?

किसी को असहिष्णु कहना उसके अवगुणों की तरफ ध्यान दिलाना है. हमारी संस्कृति में आमतौर पर ऐसा ठीक नहीं माना जाता. इसलिए असहिष्णुता की बजाय सहिष्णुता की बात की जाये, तो बेहतर होगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि आधुनिक मूल्यों के मुताबिक, सहिष्णुता के दायरे में क्या-क्या चीजें आ सकती हैं. यहां कुछ सवाल हैं, अगर इनका जवाब ‘नहीं’ है, तो हम अपने आपको सहिष्णु मान सकते हैं. जैसे-

क्या हम असहमति के विचार को जगह देने को तैयार नहीं रहते हैं? क्या हम मानते हैं कि जो सरकार पर सवाल उठा रहे या उससे असहमत हैं, वे राष्ट्रद्रोही हैं? क्या हम चाहते हैं कि संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्द हटा देने चाहिए? क्या हम किसी के विचार को सिर्फ उसके मजहब या जातीय पहचान से जोड़ कर नहीं देखते हैं? क्या हम अपने मजहब/धर्म/जाति को सर्वश्रेष्ठ नहीं मानते? क्या हमारी ख्वाहिश है कि यह मुल्क संविधान की बजाय धार्मिक कानून के मुताबिक चले? क्या हमको लगता है कि देश में अल्पसंख्यकों को ज्यादा तरजीह दी जाती है? क्या हमको लगता है कि जो लोग सम्मान वापसी कर रहे हैं, वे देश की बदनामी कर रहे हैं? क्या हम हिंसा का मुंहतोड़ जवाब हिंसा से देने में यकीन रखते हैं? क्या हम नहीं चाहते हैं कि हमारे घर के लड़के-लड़की अपनी मर्जी से अपना पार्टनर चुनें? क्या हम अपने घर/समाज में अंतरधार्मिक-अंतरजातीय शादियों का समर्थन नहीं करते? क्या इसलाम आतंक सिखाता है और हिंदू कभी आतंकी नहीं हो सकता? क्या इंसाफ का उसूल ‘आंख के बदले आंख’ होगा तभी अपराध रुकेंगे? क्या इस मुल्क की परेशानियों और तकलीफों की वजह अल्पसंख्यक हैं? क्या जिन लोगों ने अफजल गुरु, याकूब मेमन की फांसी का विरोध किया, वे देशद्रोही हैं? क्या जिन पर गोहत्या या अंतरधार्मिक शादी या मंदिर-मसजिद को नापाक करने का इल्जाम है, उन्हें चौराहे पर मार देना चाहिए? क्या जो समाज की स्थापित परंपराओं, रीति-रिवाजों, मान्यताओं या विचार के खिलाफ लिखते-बोलते हैं, उन्हें इस मुल्क में या जिंदा रहने का हक नहीं है? क्या धर्म की रक्षा करने के नाम पर अगर जान लेनी या देनी पड़े, तो हिचकना नहीं चाहिए? क्या अगर इस मुल्क में सेना का शासन हो जाये, तो सारी समस्याएं खत्म हो जायेंगी? क्या सारी समस्याओं की जड़ सेक्यूलर लोग हैं? आदि…

ये चंद सवाल हैं. कई और हो सकते हैं.

ज्ञानमंडल का वृहत हिंदी कोश बताता है कि सहिष्णुता का अर्थ सहनशील होना तो है ही, यह क्षमाशीलता भी है. यानी आप दूसरों को माफ करने की सलाहियत रखते हैं या नहीं या आपके दिल-दिमाग में द्वेष, बदला या नफरत हावी रहती है. इसलिए दूसरों की छोड़ि‍ए, हम खुद यह तय करें कि किस ओर हैं. क्या हम गुणी सहिष्णु हैं?

नासिरुद्दीन

वरिष्ठ पत्रकार

nasiruddinhk@gmail.com

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