तुलना में बरबाद न करें अपना जीवन
कहते हैं कि हम भारतीयों का सोच 21वीं सदी का है. इसमें हमें अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने और उसे पा लेने की स्वतंत्रता है, लेकिन हम अब भी एक -दूसरे से तुलना करने की भावना से मुक्त नहीं हुए है. दूसरों के चक्कर में हम अपनी हानि कर रहे हैं. इसका नमूना हमें अपनी […]
कहते हैं कि हम भारतीयों का सोच 21वीं सदी का है. इसमें हमें अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने और उसे पा लेने की स्वतंत्रता है, लेकिन हम अब भी एक -दूसरे से तुलना करने की भावना से मुक्त नहीं हुए है. दूसरों के चक्कर में हम अपनी हानि कर रहे हैं. इसका नमूना हमें अपनी पूरी सामाजिक संरचना में देखने को मिलता है. शिक्षा तंत्र को ही ले लें. अक्सर अभिभावक अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से करते हैं. हमेशा अपने बच्चों की क्षमता और इच्छा के विपरीत विषय चुनने को कहते हैं. इस वजह से बच्चों की नैसर्गिक इच्छाएं भी समाप्त हो रही हैं.
बात स्कूल की हो या पास-पड़ोस की, आज के युग में हर कोई एक-दूसरे से आगे बढ़ना चाहता है. बढ़िए न! लेकिन अपनी इच्छाओं को मार कर नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं को पंख लगा कर. इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ा रहेगा और आप हमेशा खुद को दूसरों के ऊपर पायेंगे.
कहा भी गया है कि एक अच्छा सोच किसी समाज को अच्छी दिशा देने में मुख्य भूमिका निभाता है. तो हम अपनी इच्छाओं को क्यों मारें? हमें चाहिए कि हम अपने अभिभावकों से बात करें. उन्हें अपनी इच्छाएं बतायें और उनके विश्वास पर खरा उतरें, ताकि हर कोई कहे कि देखो, उसने अपने माता-पिता और समाज का मान बढ़ाया.
लेकिन ये सारी बातें कहने, बोलने या अखबार में पढ़ने भर से नहीं होंगी. उसके लिए हमें अपनी बातों को दूसरों के सामने रखना ही होगा और इसके साथ ही सामनेवालों को समझना भी होगा, तभी जाकर सदा हम आगे बढ़ेंगे. कोई एक या दो बार फेल नहीं होगा. अच्छे समाज और एक नये भारत का निर्माण होगा, जो सदा उन्नति के शिखर पर मौजूद रहेगा.
अमर कुमार, रातू रोड, रांची