आधुनिक भारत के शिल्पी थे नेहरू

।। आदित्य मुखर्जी।।(प्रोफेसर, जेएनयू) आजादी के निर्माण में नेहरू की भूमिका किसी कुशल शिल्पी से कम नहीं है. उनके योगदान को नकारने की कोई भी कोशिश इतिहास के कच्चे ज्ञान की वजह से हो सकती है. नेहरू को आधुनिक भारत का एक महान भक्त ही नहीं, बल्कि बीसवीं सदी का महान जनवादी, मानवीय द्रष्टा कहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 14, 2013 3:48 AM

।। आदित्य मुखर्जी।।
(प्रोफेसर, जेएनयू)

आजादी के निर्माण में नेहरू की भूमिका किसी कुशल शिल्पी से कम नहीं है. उनके योगदान को नकारने की कोई भी कोशिश इतिहास के कच्चे ज्ञान की वजह से हो सकती है. नेहरू को आधुनिक भारत का एक महान भक्त ही नहीं, बल्कि बीसवीं सदी का महान जनवादी, मानवीय द्रष्टा कहा जा सकता है. लेकिन, वे उससे आगे बढ़ कर कुछ और भी थे.

नेहरू, 1947 के बाद संपूर्ण शक्ति, सत्ता और ईमानदारी से भारतीय राजनीति के नियंता थे. भारतीय राष्ट्रीय क्रांति की पैदाइश होने के नाते नेहरू सबसे पहले एक राष्ट्रवादी थे. राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर वे हमेशा अडिग रहे. उनके कामों को इस प्रतिबद्धता से बाहर जाकर नहीं समझा जा सकता. नेहरू देश की आजादी को राजनीतिक आजादी से परे ले गये. आजादी के बाद भारत के सामने चुनौतियों का अंबार था. हर चुनौती, दूसरे से बड़ी थी. शायद नेहरू जैसा दूरदर्शी व्यक्ति ही, इनका इतने बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकता था. असफलताएं, नेहरू के हिस्से में भी आयीं. लेकिन अगर उनकी असफलताओं को उनकी सफलताओं के बरक्स देखें, तो वे कहीं छोटी दिखायी देती हैं.

नेहरू ने अपना सफर सुदृढ़ वैचारिक धरातल पर शुरू किया. उनके पास देश के निर्माण का एक सपना था. वे एक जनवादी और नागरिक स्वतंत्रता पर आधारित राजनीति की नींव रख कर एक राष्ट्र के रूप में भारत का सुदृढ़ीकरण चाहते थे. राष्ट्रवाद और समाजवाद के प्रति उनकी दोहरी निष्ठा का रास्ता विलक्षण था. यह एक अनजान रास्ता था. न तो मार्क्‍स और न ही गांधी, जिन दो लोगों का उन पर गहरा और दीर्घकालीन असर पड़ा था, इस बारे में उनका कोई मार्गदर्शन कर सकते थे कि एक राष्ट्र की रचना कैसे की जाये? इस कठिन कार्य को उन्होंने एक हद तक रोमांच और आशा के साथ शुरू किया. उनका हमेशा से यह विश्वास रहा कि भारत की सबसे बड़ी जरूरत ‘अपनी सफलता के प्रति निश्चितता की भावना ही है’. अपनी सफलता की आशा और उत्तेजना का एहसास उन्होंने 1962 के युद्ध की गद्दारी और हार के बाद भी नहीं छोड़ा. इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह था कि भारत के करोड़ों लोगों में उन्होंने इस भावना को पहुंचाने में सफलता हासिल की.

नेहरू ने अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए जिस मूल दृष्टिकोण को अपना आधार बनाया, वह जनवाद, कानून का शासन, व्यक्ति की स्वतंत्रता और सम्मान, सामाजिक समता और समानता, अहिंसा, नैतिकता आधारित राजनीति पर टिका था. नेहरू को एक ऐसी दुनिया मिली थी, जो दो महाशक्तियों-अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बंटी हुई थी. ये दोनों शक्तियां अपना वर्चस्व शेष दुनिया पर फैलाने के लिए आमादा थीं. नेहरू ने ऐसे हर दबाव का मुकाबला और विश्व शक्ति का मोहरा बनने से इनकार कर भारत को मजबूती से निष्पक्ष बनाये रखा. यह एक बड़ी कामयाबी थी कि शीत युद्ध के उस भीषण दौर में भारत का अपना आंतरिक और बाहृय नीतियों पर नियंत्रण बना रहा.

आर्थिक दृष्टि से देखा जाये, तो किसी देश की आजादी आर्थिक शक्ति पर निर्भर करती है. औपनिवेशिक पिछड़ेपन से बाहर निकल कर कृषि एवं उद्योग- दोनों में आत्मनिर्भर और आत्मसंचालित विकास निश्चित करने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया. आत्मनिर्भरता उनका सबसे पहला मंत्र था. तीव्र औद्योगीकरण, खासकर भारी उद्योगों का विकास, नियोजन, सार्वजनिक क्षेत्र का विकास, परमाणु ऊर्जा तथा विज्ञान एवं तकनीकी, तकनीकी आधुनिकीकरण, तकनीकी एवं वैज्ञानिक विशेषज्ञों को उचित प्रशिक्षण पर उन्होंने जोर दिया.

आजादी के समय भारत भारी मशीनों का शत-प्रतिशत आयात करता था. 1974 तक आते-आते यह महज 9 प्रतिशत रह गया था. भाखड़ा नंगल डैम, जिसे नेहरू ने आधुनिक भारत का मंदिर कहा था, सार्वजनिक लौह-इस्पात कारखानों की स्थापना- भारतीय अर्थव्यवस्था को नेहरू का दूरदर्शी योगदान माना जा सकता है.

नेहरू यह मानते थे कि भारत की समस्याओं के समाधान के लिए विज्ञान और तकनीक का विकास अति महत्वपूर्ण है. जनवरी, 1938 में ही भारतीय विज्ञान कांग्रेस को दिये गये अपने संदेश में उन्होंने कहा था, ‘सिर्फ विज्ञान ही अकेले भूख और गरीबी, गंदगी और अशिक्षा, अंधविश्वास और मृत हो रही परंपरा एवं रीति-रिवाजों, संसाधनों को भारी बर्बादी से बचा सकता है.’ 1958 में लोकसभा द्वारा पारित किये गये वैज्ञानिक नीति प्रस्ताव में यही विचार दोहराया गया. भारत परमाणु ऊर्जा के महत्व को समझनेवाले शुरुआती देशों में था. 1948 के आरंभ में उन्होंने लिखा था, ‘भविष्य उनका होगा, जो परमाणु ऊर्जा पैदा कर सकेंगे.’1948 में भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष भारत के प्रमुख वैज्ञानिक होमी भाभा बनाये गये. भारत के पहले परमाणु ऊर्जा रिएक्टर, जो एशिया का भी पहला रिएक्टर था, ने अगस्त 1956 में काम करना शुरू किया. भारत ने इस दौरान अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भी कदम बढ़ाया. इसके लिए इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना 1962 में की गयी और थुंबा में रॉकेट लांचिंग फैसिलिटी स्थापित की गयी.

संसद और संविधान के प्रति नेहरू का सम्मान बेमिसाल था. उन्होंने संसद को जनता के विचारों को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण मंच बनाने की भरपूर कोशिश की. उन्होंने नियम बना रखा था कि संसद में प्रश्नकाल के दौरान होनेवाली बहसों के दौरान हमेशा वहां मौजूद रहेंगे. नेहरू के समय में कमजोर विपक्ष के बावजूद संसदीय बहस का स्तर आज की तुलना में कहीं स्तरीय और ऊंचा था. नेहरू विपक्ष का काफी आदर किया करते थे और उनकी आलोचनाओं के प्रति बेहद संवेदनशील थे. उनके नेतृत्व में कैबिनेट प्रणाली बहुत स्वस्थ तरीके से विकसित हुई. नागरिक अधिकारों को उन्होंने बेहद बहुमूल्य माना. उन्होंने प्रेस को अपने विचार व्यक्त करने की पूरी आजादी दी.

नेहरू की उपलब्धियां विशाल हैं. इनमें देश का एकीकरण, विविधता में एकता की भावना को मजबूती देना शामिल है. उनके हिस्से में असफलताएं भी आयीं, पर महान चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्ति की असफलताएं भी महान होती हैं. नेहरू इसके अपवाद नहीं हैं. नेहरू की उपलब्धियों पर बहस लाजमी है, लेकिन उनकी सफलताओं को नजरअंदाज करना नामुमकिन है. (बातचीत पर आधारित)

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