अच्छे-बुरे लोग हर जगह होते हैं. जनता उन्हें अच्छी तरह जानती व पहचानती है. अन्ना आंदोलन से एक नयी जागृति आयी. आज आम जनता को धार्मिक कट्टरवाद व जातिवाद से घृणा होने लगी है. क्योंकि, इनसे उन्हें सिवाय छलावा के कुछ नहीं मिला. जाति व धर्म शुरू से ही संपन्न लोगों की चीज रही है.
गरीब तो पेट की आग शांत करने की जुगत में रहते हैं. उसके पास समय ही कहां है? गरीबी, भुखमरी व बेकारी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. आज भी जाति, धर्म, छुआछूत, गरीबी व महिलाओं पर जुर्म मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में उनके समकालीन साहित्यकारों की लेखनी से ज्यादा दिखायी देते हैं.
इसलिए उनका साहित्य पहले की अपेक्षा आज अधिक प्रासंगिक है. यह समस्या जनसंख्या विस्फोट, जातीय-धार्मिक कट्टरवाद और पूंजीवादी सामंती व्यवस्था की ही देन है, जिसे जनता समझने-बूझने लगी है और नतीजा भी देने लगी है. मानवता से बड़ा कोई धर्म व जाति नहीं हो सकते.
-वेद मामूरपुर, नरेला