धर्म से न थोपा जाये व्यक्ति की पहचान
धर्म को लेकर किसी दुराग्रह को पाल लेने का जमाना अब कतई नहीं रहा. तकनीकी ने हमें वैश्विक स्तर का व्यापक फलक उपलब्ध करा दिया है. अब समय आ गया है कि धर्म के संस्थागत स्वरूप को समूह या व्यक्ति की पहचान पर न थोपा जाये. धर्म और पूजा करने की अपनी-अपनी पद्धति को निहायत […]
धर्म को लेकर किसी दुराग्रह को पाल लेने का जमाना अब कतई नहीं रहा. तकनीकी ने हमें वैश्विक स्तर का व्यापक फलक उपलब्ध करा दिया है. अब समय आ गया है कि धर्म के संस्थागत स्वरूप को समूह या व्यक्ति की पहचान पर न थोपा जाये. धर्म और पूजा करने की अपनी-अपनी पद्धति को निहायत व्यक्तिगत चीज ही रहने दिया जाये कि कोई व्यक्ति कैसे अपने परम सत्ता को याद करता है.
अजीब हालत है हमारे देश की कि सारी प्रगति और तकनीकी क्रांति को ताक पर रख कर मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता की उपेक्षा कर सिर्फ धार्मिक आधार देश को परिभािषत करने का कुचक्र रचा जा रहा है. क्या यह हमारे स्वप्नों का भारत होगा, जो जातिप्रथा, अंधविश्वास और जड़ता के साथ आगे बढ़े. हमें अपने बहुत से बोझों को उतार कर फेंकना होगा.
हमें हमारे कामों से मूल्यांकित किया जाना चाहिए, न कि धर्म के आधार पर. इस देश के इतिहास से, इसके विकास से, ऐतिहासिक शख्सियतों की भूमिका को धार्मिक पैमाने पर नहीं मापा जा सकता है और न ही उनकी उपेक्षा की जा सकती है. यह देश हमेशा से समझदारों का रहा है. कट्टर बर्बरों का नहीं और न ही प्रतििक्रयावादी रहा है कि फलां ऐसा कर रहा है, तो हम भी करें या हमें भी करना चाहिए. अपनी मौलिक सोच, स्वभाव और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी पहचान के साथ यह हृदय और मस्तिष्क के तालमेल वाला अदभुत लोगों का देश रहा है.
बदलते मौसम, विविधता और धार्मिक कट्टरता से अलग भाईचारा परस्पर समभाव के साथ तालमेल या चहलकदमी हमारे जेनेटिक में है. इसे आज बेहतर तरीके से समझने की आवश्यकता है.
-डॉ राजेश प्रसाद, रेड़मा, डाल्टेनगंज