विज्ञान और क्रिकेट को जोड़नेवाला तार
भारत के उच्चतम नागरिक सम्मान- भारत रत्न के लिए जिन दो नामों की घोषणा की गयी है, उनमें ऊपरी तौर पर साम्य शायद सिर्फ इतना है कि दोनों अपने-अपने क्षेत्र के शीर्ष पर हैं. एक क्रिकेट का सितारा है, तो दूसरा विज्ञान का महारथी. सचिन तेंडुलकर डॉन ब्रैडमैन के बाद के युग में दुनिया के […]
भारत के उच्चतम नागरिक सम्मान- भारत रत्न के लिए जिन दो नामों की घोषणा की गयी है, उनमें ऊपरी तौर पर साम्य शायद सिर्फ इतना है कि दोनों अपने-अपने क्षेत्र के शीर्ष पर हैं. एक क्रिकेट का सितारा है, तो दूसरा विज्ञान का महारथी. सचिन तेंडुलकर डॉन ब्रैडमैन के बाद के युग में दुनिया के महानतम क्रिकेट खिलाड़ी माने जाते हैं. सीएनआर राव भारतीय वैज्ञानिकों की कतार में सबसे आगे हैं.
दोनों को एक साथ भारत रत्न से अलंकृत करने का फैसला, भले दो विपरीत धाराओं को मिलाने की कोशिश दिखे, लेकिन गौर से देखने पर इनमें समानता के सूत्रों को तलाशना कठिन नहीं है. दरअसल, तेंडुलकर और राव इनसानी जिजीविषा के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि या प्रतीक हैं. यह नये मुकामों को छूने, हर सरहद को पार करने की आदिम जिजीविषा ही है, जिसने आखेट करनेवाले इनसान को आज के अकल्पनीय विज्ञान-प्रौद्योगिकी युग तक पहुंचाया है.
तेंडुलकर की उपलब्धि क्या है? क्या सिर्फ यह कि उन्होंने शतकों का शतक जड़ा, या दो सौ बार टेस्ट मैच खेलने के लिए मैदान में उतरे? या यह कि उन्होंने रनों और कीर्तिमानों का पर्वत खड़ा किया? नहीं, तेंडुलकर की असल उपलब्धि यह है कि वे इनसानी क्षमता की परिभाषा को एक कदम आगे ले गये. उन्होंने वह किया, जो ‘नामुमकिन’ माना जाता था. अब भारतीय वैज्ञानिकों में संभवत: सबसे सम्मानित सीएनआर राव की उपलब्धियों को इस कसौटी पर कस कर देखिए. दुनियाभर के 60 विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि हासिल करनेवाले राव के पांच दशक के कैरियर में 1400 से ज्यादा शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं. वे दुनिया के उन चंद वैज्ञानिकों में एकमात्र भारतीय हैं, जिनके शोध पत्र का दृष्टांत के तौर पर लगभग 50 हजार से ज्यादा बार उल्लेख किया गया है.
जाहिर है, ये आंकड़े उनके कार्यो की महत्ता को प्रदर्शित करते हैं. लेकिन, राव का महत्व इससे भी बढ़ कर इस बात को लेकर है कि उन्होंने भारत को बेहद जटिल और एडवांस नैनो टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्र में शीर्ष तीन देशों में शुमार करवाया है. राव की उपलब्धियां हैरत में डालनेवाली या नामुमकिन सी लगती हैं. लेकिन इसमें हैरत कैसा! क्या यह सच नहीं है कि नामुमकिन को मुमकिन करने की इनसानी फितरत ही सभ्यता की यात्रा का ईंधन है!