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अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों के बीच ऐसी सूचनाएं भी आती रहती हैं, जो यह इंगित करती हैं कि पनघट की डगर बहुत कठिन है. दिसंबर के पहले सप्ताह में विदेशी निवेशकों ने स्टॉक मार्केट से 2,362 करोड़ रुपये की निकासी की है. पिछले महीने 7,074 करोड़ की निकाले गये थे. दिसंबर में विदेशी पोर्टफोलियो […]

अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों के बीच ऐसी सूचनाएं भी आती रहती हैं, जो यह इंगित करती हैं कि पनघट की डगर बहुत कठिन है. दिसंबर के पहले सप्ताह में विदेशी निवेशकों ने स्टॉक मार्केट से 2,362 करोड़ रुपये की निकासी की है. पिछले महीने 7,074 करोड़ की निकाले गये थे.

दिसंबर में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ने ऋण बाजार में महज 2.81 करोड़ ही डाला है. ये संख्याएं इस संदर्भ में चिंताजनक हैं कि अक्तूबर में विदेशी निवेशकों द्वारा शेयर बाजार में 6,650 करोड़ का निवेश किया था. इस वर्ष अब तक विदेशी निवेशकों ने स्टॉक मार्केट में 18,260 करोड़ और ऋण बाजार में 51,347 करोड़ का निवेश किया है.

आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि इस निकासी का तात्कालिक कारण अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में संभावित बढ़ोतरी है. यह वृद्धि करीब एक दशक के बाद हो रही है. माना जा रहा है कि इससे दुनियाभर के विकासशील बाजारों से पूंजी की निकासी होगी और बेहतर मुनाफे की उम्मीद में अमेरिका में निवेशित होगी. भारतीय बाजार की मौजूदा हालत भी निवेशकों के लिए निराशाजनक है. निक्की के पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स के अनुसार नवंबर महीने में सेवा क्षेत्र में आउटपुट में गिरावट का स्तर पिछले पांच महीने में सबसे निचले स्तर पर आ गया. सेवा क्षेत्र में मांग में कमी ने बिजनेस सेंटीमेंट स्तर को गत 10 सालों में सबसे कम स्तर पर ला दिया है.

यही तसवीर श्रम बाजार में दिख रही है, जहां रोजगार वृद्धि शून्य के आसपास पहुंच चुकी है. नवंबर में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उत्पादन की गति पिछले 25 महीनों के सबसे निचले स्तर पर रही है. उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार जुलाई-सितंबर की तिमाही में विकास की दर 7.4 फीसदी रही है, जो कि चीन से अधिक है. दो दिसंबर को रिजर्व बैंक ने भी कमी की आशंकाओं के बावजूद इस वित्त वर्ष में 7.4 फीसदी के वद्धि दर के लक्ष्य को बरकरार रखा है.

अगर नवंबर की गिरावट को कमजोर मॉनसून के प्रभाव, ग्रामीण भारत में मांग की कमी और अपेक्षित निवेश का न होना जैसे कारकों के साथ रख कर देखें, निष्कर्ष यही निकलता है कि सरकार को आर्थिक मोर्चे पर बहुत मुस्तैदी से काम करने की जरूरत है. जरूरी सुधारों और नीतिगत पहलों के साथ सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा, जैसा कि रिजर्व बैंक ने सुझाव दिया है. इन्हीं आयामों पर आगामी बजट का स्वरूप भी निर्भर करेगा.

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