बोझ न बढ़े

पूरी संभावना है कि संसद के मौजूदा सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक पारित हो जायेगा. लोकसभा द्वारा पहले ही पारित यह संविधान संशोधन प्रस्ताव राज्यसभा में विचाराधीन है. विपक्ष की राय पर भी सरकार का रुख सकारात्मक है और जीएसटी पैनल के सुझाव भी आ चुके हैं. आर्थिक सुधारों की दिशा में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 7, 2015 12:55 AM
पूरी संभावना है कि संसद के मौजूदा सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक पारित हो जायेगा. लोकसभा द्वारा पहले ही पारित यह संविधान संशोधन प्रस्ताव राज्यसभा में विचाराधीन है. विपक्ष की राय पर भी सरकार का रुख सकारात्मक है और जीएसटी पैनल के सुझाव भी आ चुके हैं.

आर्थिक सुधारों की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है और कानून बन जाने के बाद सरकार इसे 2016 से ही लागू कर सकती है. लेकिन, जीएसटी पैनल द्वारा प्रस्तावित दरों से कुछ गंभीर चिंताएं भी पैदा हुई हैं. पैनल ने सेवा कर की दर को मौजूदा 14.5 फीसदी से बढ़ा कर 17 से 18 फीसदी करने की सिफारिश की है.

इसका मतलब यह है कि अगर दर बढ़ाने का सुझाव मान लिया जाता है, तो फोन समेत सूचना तकनीक से संबंधित सेवाएं, रेस्त्रां में खाना, मनोरंजन, बैंक सेवाएं आदि अधिक महंगे हो जायेंगे. वर्ष 1994 में पहली बार चुनिंदा सेवाओं पर पांच फीसदी की दर से सेवा कर लगाया गया था, जो अब 14.5 फीसदी के स्तर तक पहुंच गया है और इसके दायरे में लगभग सभी सेवाएं आती हैं. पिछले बजट में 12.36 फीसदी के तत्कालीन दर को 14 फीसदी कर दिया गया था, जिसमें कुछ दिन पहले 0.5 फीसदी का स्वच्छता अधिकार भी जुड़ गया है. सेवा कर के अलावा जीएसटी पैनल ने ‘निम्न दर वस्तुओं’ पर 12 फीसदी, लक्जरी कारों, शीतल पेय, पान मसाला और तंबाकू पर 40 फीसदी कर तथा कीमती धातुओं पर दो से चार फीसदी कर लगाने का सुझाव भी दिया है.

उम्मीद है कि सरकार और संसद कराधान प्रणाली पर समुचित निर्णय लेंगे, पर यह तथ्य ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि अप्रत्यक्ष करों का सबसे बड़ा बोझ आम जनता की जेब पर पड़ता है. अपेक्षित आर्थिक अवसरों की कमी और निरंतर बढ़ती महंगाई से लोग पहले से ही त्रस्त हैं. ऐसे में करों में खासी बढ़ोतरी उन्हें बड़ी परेशानी में डाल सकती है.

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन और अन्य विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि ग्रामीण भारत, जहां देश की आबादी का 70 फीसदी हिस्सा बसता है, में आय और मांग घटी है, जिसका प्रतिकूल असर देश की अर्थव्यवस्था पर हो रहा है. करों के बढ़ने से निम्न मध्यवर्ग और गरीब लोगों की क्रय शक्ति का उत्तरोत्तर क्षय होगा, खासकर तब जब आय में समुचित वृद्धि नहीं हो रही हो. करों के निर्धारण में संसद और सरकार को इन कारकों का पर्याप्त संज्ञान लेना चाहिए.

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