असहिष्णुता, असुरक्षा, भय और आतंक
असहिष्णुता, असुरक्षा, भय और आतंक तभी बढ़ता है, जब हम किसी की ‘कीर्तनमंडली’ में शामिल न हो कर स्वविवेक और तात्कालिकता से चालित होते हैं. क्या भारत में संघ विरोधी, भाजपाविरोधी और मोदी विरोधी को चुप कराया जायेगा? पिछले कुछ महीनों से असहिष्णुता पर जितनी अधिक चर्चा-बहस हो रही है, उससे बहुत-बहुत कम असुरक्षा, भय […]
इसलिए मस्तिष्क की सफाई जरूरी है. सवाल यह है कि हमारे मस्तिष्क में गंदगी भरनेवाली और दिमाग को ‘कूड़ेदान’ बनानेवाली शक्तियां कौन हैं और कब से यह गंदगी भरी जा रही है? मस्तिष्क में गंदगी भरने से किसे लाभ प्राप्त होता है? गंदगी मिटाने का कार्य राजनीतिक दलों और सरकारों का है या शिक्षा और संस्कृति का? हमारी शिक्षण संस्थाएं हमारे मस्तिष्क को कितना उर्वर, रचनात्मक, उदार, प्रगतिशील, सामाजिक, नैतिक, विवेकवान, लोकतांत्रिक, वैज्ञानिक सोच-दृष्टि-संपन्न बना रही हैं?
बाबरी से दादरी तक भारतीय राजनीति क्रमश: अधिक असहिष्णु होती गयी है, बाबरी मसजिद ध्वंस (1992) के समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. दादरी घटना के समय उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार है. सरकारें किसी भी दल-विशेष की क्यों न हों, वे उन शक्तियों को निरस्त करने में असफल रही हैं, जो बहुलतावादी भारतीय संस्कृति को व्यवस्थित रूपों में निरंतर क्षतिग्रस्त करती रही हैं. उन्होंने वैसी शक्तियों को बढ़ाया-फैलाया है. कवियों, लेखकों, कलाकारों, फिल्मकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों का विरोध बेमानी है? अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा तक भारत की इस वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं.
अपने से विपरीत आवाजों को दबाना-कुचलना एक प्रकार की ‘सांस्कृतिक तानाशाही’ की दिशा में बढ़ना है. रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने आिर्थक प्रगति के लिए सहिष्णुता और आदर को आवश्यक माना है. आइआइटी दिल्ली के दीक्षांत भाषण में उन्होंने बीते 31 अक्तूबर को जो कहा है, उस पर कम ध्यान दिया गया है. राजन ने एक साथ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री रॉबर्ट मर्टन सौलो (1924), भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता िरचर्ड फेनमैन (1918-1988), प्रख्यात वैज्ञानिक आइंसटाइन, तंझौर के वृहदेश्वर शैव मंदिर और महात्मा गांधी के साथ मनोविज्ञान के सिद्धांत का भी जिक्र किया, जो सब सहिष्णुता और बहुलतावाद के साथ थे. यह समझना चाहिए कि रॉबर्ट मर्टन सौलो को ‘आर्थिक संवृद्धि के विवेचन’ के लिए जो नोबेल पुरस्कार दिया गया था, वह आर्थिक संवृद्धि क्या एक असहिष्णु समाज और माहौल में संभव है? अर्थशास्त्र में उनका संवृद्धि मॉडल ‘सौलो-स्वान न्यू क्लासिकल ग्रोथ मॉडल’ के नाम से जाना जाता है.
वैचारिक कट्टरता का संबंध असहिष्णुता, असुरक्षा, भय और आतंक से है. यह वैचारिक कट्टरता भारतीय संविधान और लोकतंत्र की विरोधी है. प्रश्न कट्टर राजनीतिक विचारधारा का है. कांग्रेस और वामदलों में यह वैचारिक कट्टरता नहीं थी. ‘‘अत्यधिक ध्रुवीकृत समुदाय परमाणु बम की तरह खतरनाक है.’’ सम्मान लौटानेवाले बेशक कट्टर भाजपा विरोधी थे. उनका विरोध वैचारिक कट्टरता से था. क्या भारत में यह दक्षिणपंथी वैचारिक कट्टरता समाप्त होगी? उम्मीद कम है. यह समय-समय पर रुकने और थमने का आभास भर देती है. जब तक वैचारिक कट्टरता रहेगी, हिंदू राष्ट्र का एजेंडा रहेगा. उससे असहमत लोगों में भय, असुरक्षा और आतंक का माहौल भी बना रहेगा. अनुदार, असहिष्णु ताकतें फिलहाल अधिक नहीं हैं. भारत की जनता ने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 31 प्रतिशत वोट दिये हैं. दोगुनी संख्या अपने विचारों में साफ है. बगीचा तभी सुंदर होता है, जब उसमें सौ तरह के फूल खिले हों.