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असल मुद्दों पर नहीं होती बहस

पिछले कई माह से विभिन्न मंचों पर असहिष्णुता पर जारी बहस के बीच अचानक सहिष्णुता का सैलाब आ गया. सारे बुद्धिजीवी, नेता, अभिनेता और साहित्यकार इस विषय पर मौन हो गये. क्या देश को सभी समस्याओं से निजात मिल गया? आश्चर्य है तमिलनाडु में आयी तबाही पर वेतन और भत्ते लौटाने की रवायत किसी ने […]

पिछले कई माह से विभिन्न मंचों पर असहिष्णुता पर जारी बहस के बीच अचानक सहिष्णुता का सैलाब आ गया. सारे बुद्धिजीवी, नेता, अभिनेता और साहित्यकार इस विषय पर मौन हो गये.
क्या देश को सभी समस्याओं से निजात मिल गया? आश्चर्य है तमिलनाडु में आयी तबाही पर वेतन और भत्ते लौटाने की रवायत किसी ने नहीं दिखायी. पर्यावरण संरक्षण पर किसी ने टिप्पणी नहीं दी और किसी दल ने किसानों की बदहाली पर सड़क जाम नहीं किया. यह दुखद है कि भारत का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग देश के मौलिक समस्याओं पर पिछले दिनों जैसी संजीदगी नहीं दिखायी. आज युवा-वर्ग रोजगार के अभाव में विषाद ग्रस्त है.
देश के सवोच्च सदन से लेकर राज्य के विधानसभाओं में सहिष्णुता व असहिष्णुता पर कृत्रिम द्वंद्व जारी है. सरकार पर अच्छी नीतियों के निर्माण का दबाव बनाने का प्रयास कहीं नहीं दिखता. प्रयास है, तो सिर्फ नाम मात्र के विरोध का.
– मनोज आजिज, जमशेदपुर

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