यह कैसी सियासत!
संसद में न तो आरोप-प्रत्यारोप की परंपरा नयी है और न ही हंगामे और शोर-शराबे की. इन कारणों से दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित भी होती रही है. विपक्ष की व्यवधान की रणनीति या सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष की बात नहीं सुनने की जिद्द पर तर्क-वितर्क होते रहते हैं. लेकिन, इससे शायद ही कोई इनकार […]
संसद में न तो आरोप-प्रत्यारोप की परंपरा नयी है और न ही हंगामे और शोर-शराबे की. इन कारणों से दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित भी होती रही है. विपक्ष की व्यवधान की रणनीति या सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष की बात नहीं सुनने की जिद्द पर तर्क-वितर्क होते रहते हैं.
लेकिन, इससे शायद ही कोई इनकार करेगा कि अब तक ऐसे मामलों में मुद्दे सरकार और राजनीति से जुड़े होते थे. जबकि, मंगलवार को लोकसभा और राज्यसभा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने जिस मुद्दे पर हंगामा किया, वह कथित भ्रष्टाचार के मुकदमे से संबद्ध है, जो अदालत में विचाराधीन है.
‘नेशनल हेराल्ड’ और उससे संबंधित परिसंपत्तियों के स्वामित्व में हुए कथित घपले पर दिल्ली की एक अदालत में मुकदमा चल रहा है, जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ अन्य कांग्रेसी नेता आरोपी हैं. भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर इस मुकदमे में अदालत ने प्रतिवादियों को अदालत में हाजिर होकर अपना पक्ष रखने के लिए सम्मन जारी किया है. लेकिन, मंगलवार को संसद की कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेसी सदस्यों ने इसे ‘राजनीतिक बदले की कार्रवाई’ बताते हुए हंगामा शुरू कर दिया.
लोकसभा में अध्यक्ष और राज्यसभा में उपसभापति के बार-बार यह पूछने पर कि आखिर मुद्दा क्या है, कांग्रेसी सांसद शांतिपूर्ण तरीके से कोई जवाब न देते हुए सिर्फ हंगामा करते रहे. अत: कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ी. हंगामे के दौरान लोकसभा में सोनिया गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद मौजूद थे. इससे स्पष्ट है कि यह तमाशा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की शह पर किया जा रहा था.
पिछले मॉनसून सत्र में कांग्रेस के गैर-जिम्मेवाराना रवैये के कारण राज्यसभा में न के बराबर और लोकसभा में थोड़ा-बहुत ही कामकाज हो सका था. अब मौजूदा शीतकालीन सत्र में भी कांग्रेस ने कुछ अवसरों पर हंगामे को अपना हथियार बना कर सरकार को घेरने की कोशिश की है.
लेकिन, मंगलवार को संसद में जो रवैया इस विपक्षी दल ने अपनाया, वह देश के संसदीय इतिहास में एक चिंताजनक उदाहरण के रूप में दर्ज किया जायेगा. इसे समझने के लिए नेशनल हेराल्ड मामले से संबंधित कुछ बातों का उल्लेख जरूरी है.
स्वामी द्वारा दायर मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने साजिश के तहत ‘यंग इंडिया’ नामक कंपनी बना कर नेशनल हेराल्ड की प्रकाशक कंपनी ‘एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड’ पर कब्जा कर लिया. यंग इंडिया ने 50 लाख रुपये का भुगतान करके एजेएल पर कांग्रेस की बकाया रकम 90.25 करोड़ रुपये की वसूली का अधिकार भी ले लिया. दस्तावेजों के मुताबिक, यंग इंडिया में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का 76 फीसदी हिस्सा है तथा शेष 24 फीसदी शेयर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज एवं गांधी परिवार के नजदीकी सुमन दुबे तथा सैम पित्रोदा के पास हैं.
आरोपों में यह भी कहा गया है कि एजेएल को दिया गया कर्ज भी अवैध है, क्योंकि यह एक राजनीतिक दल के कोष से दिया गया था. आरोपों को देखने के बाद अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि नेशनल हेराल्ड की दो हजार करोड़ से अधिक की अचल संपत्ति को हथियाने के इरादे से यंग इंडिया कंपनी बनायी गयी थी.
निचली अदालत ने 26 जून, 2014 को आरोपियों को सम्मन जारी करते हुए सात अगस्त को हाजिर होने का आदेश दिया था. बाद में हाइकोर्ट ने उस आदेश को स्थगित कर दिया, लेकिन आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया था. फिर निचली अदालत ने आठ दिसंबर को पेशी का आदेश दिया था, जिसे मंगलवार को बढ़ा कर 19 दिसंबर कर दिया गया है. इससे पहले सोमवार को हाइकोर्ट ने सम्मन को फिर से स्थगित करने से मना कर दिया था.
अब कांग्रेस कह रही है कि चूंकि स्वामी भाजपा के नेता हैं, इसलिए यह मुकदमा राजनीतिक बदले की कार्रवाई है. उल्लेखनीय है कि हाइकोर्ट कांग्रेस के इस आरोप को खारिज कर चुका है और कहा है कि याचिकाकर्ता की स्थिति भ्रष्टाचार के मामलों में सीमित नहीं की जा सकती है. उसने यह भी टिप्पणी दी है कि निचली अदालत बहुत गंभीरता से इन आरोपों की जांच करे. यानी अब आरोपियों को अदालत के सामने अपनी सफाई देनी है.
ऐसे में एक जिम्मेवार राजनीतिक दल के राजनेता होने के नाते सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य संबद्ध लोगों को अपने बेदाग होने के सबूत एवं तर्क अदालत के सामने रखने चाहिए तथा कानूनी प्रक्रिया के अनुरूप आचरण करना चाहिए. इस मामले में संसद को बाधित करना न सिर्फ अनुचित है, बल्कि इसे अदालत पर दबाव बनाने का गलत प्रयास भी माना जायेगा. कांग्रेस को समझना चाहिए कि इस प्रकरण पर पूरे देश की नजर है. अदालत का फैसला तो बाद की बात है, पर ऐसी हरकतों के लिए कांग्रेस को राजनीतिक खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है.