नक्सल के मूल कारणों का हो सफाया
आज विकास के कई काम नक्सलियों के कारण प्रभावित हो रहे हैं. इस समस्या से निबटने के िलए नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराना या फिर जेल में बंद कर देने भर से नक्सल समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता. नये चेहरे तो जुड़ते ही रहेंगे. यक्ष प्रश्न तो जीवित ही रहेगा. शासन-प्रशासन नक्सलियों […]
आज विकास के कई काम नक्सलियों के कारण प्रभावित हो रहे हैं. इस समस्या से निबटने के िलए नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराना या फिर जेल में बंद कर देने भर से नक्सल समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता. नये चेहरे तो जुड़ते ही रहेंगे. यक्ष प्रश्न तो जीवित ही रहेगा.
शासन-प्रशासन नक्सलियों के सफाये के लिए योजनाएं तैयार कर रहा है. लेकिन, सवाल यह पैदा होता है कि इनके सफाये के साथ नक्सल समस्याओं के मूल कारणों का भी सफाया होगा? नक्सलवादी सिद्धांतों को अपनाने के लिए विवश लोगों के मूल कारणों को जाने बिना केवल नक्सलियों का सफाया करने भर से ही तो काम नहीं चलेगा.
क्या उन लोगों पर भी किसी प्रकार की कार्रवाई होगी? सही मायने में देखा जाये, तो नक्सलवादियों के बढ़ने के पीछे का मूल कारण तो वही हैं, जो लूट-खसोट के जरिये आम आदमी के हिस्से की चीजों पर अपना आधिपत्य जमा लेते हैं. गरीबों के हक की राशि व अनाजों को वे खुद हजम कर जा रहे हैं. क्या सरकार लोकतंत्र की रगों में समाये ऐसे लोगों का सफाया कर सकेगी?
महात्मा गांधी ने कहा है कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं. उनका यह कथन आज भी प्रासंगिक है, लेकिन यह सिर्फ उन लूटेरों के संदर्भ में ही क्यों लागू होता है, जो आम जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं. क्या वे पापी नहीं हैं? क्या उनके पाप से समाज बिखर नहीं रहा है? क्या अमन-चैन की जिंदगी बसर करने का सपना देखनेवाले लोग पेट की आग बुझाने के लिए हिंसक रास्ता नहीं अपना रहे हैं?
क्या किसी शासक ने समाज के लूटेरों को कानून की जद में लाने का काम किया है? ऐसे कई यक्ष प्रश्न हैं, जो आज भी कुरेद रहे हैं. जब तक शासन-प्रशासन नक्सलवाद के फलने-फूलने के मूल कारणों का सफाया नहीं करता, तब तक सिर्फ नक्सलियों पर कार्रवाई बेमानी साबित होगी.
-स्वामी गोपाल आनंद, रजरप्पा