आधे मन का अधूरा समाधान

चंदन श्रीवास्तव एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस टेलीविजनी लोकतंत्र की एक खासियत है. उसमें जनहित के मसले पर कुछ करना उतना जरूरी नहीं, जितना कि करता हुआ दिखायी देना. फिलहाल दिल्ली में यही हो रहा है. जोर हवा में घुलते जहर को रोकने पर कम, किसी तरह अदालत के निर्देश से अपनी जान बचा लेने पर ज्यादा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 11, 2015 1:18 AM
चंदन श्रीवास्तव
एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस
टेलीविजनी लोकतंत्र की एक खासियत है. उसमें जनहित के मसले पर कुछ करना उतना जरूरी नहीं, जितना कि करता हुआ दिखायी देना. फिलहाल दिल्ली में यही हो रहा है. जोर हवा में घुलते जहर को रोकने पर कम, किसी तरह अदालत के निर्देश से अपनी जान बचा लेने पर ज्यादा है. केजरीवाल सरकार ने अपनी गंभीरता के इजहार के लिए समाधान सुझाया है कि सम संख्या वाली तारीखों को सम संख्या और विषम संख्या वाली तारीखों को विषम संख्या वाली कार चलेगी. हालांकि, इस समाधान को लेकर सरकार सहज नहीं है.
एक तो जनवरी के शुरुआती पंद्रह दिन के लिए ही इस पर अमल करके इसकी उपयोगिता जांचने की बात है. दूसरे, दोपहिया वाहनों को नियम से बाहर रखा गया है. तीसरे, पाबंदी सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक होगी. चौथे, अगर कारचालक कोई एकल महिला है, तो उस पर पाबंदी नहीं होगी. इन चार बातों से स्पष्ट है कि पाबंदी के आयद रहते यथासंभव निजी वाहनों को चलते रहने की छूट देने की भरपूर कोशिश की गयी है.
मामले में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का रुख अभी सामने नहीं आया है, लेकिन केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री की हालिया प्रतिक्रिया से मसले पर केंद्र सरकार के रुख का अनुमान किया जा सकता है.
हुआ यों कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस हफ्ते महिपालपुर-गुड़गांव एक्सप्रेस वे पर जाम में फंस गये. तब मंत्रीजी को यह नेक ख्याल आया कि ‘सड़कों की खराब बनावट और रख-रखाव’ दिल्ली के ‘वायु-प्रदूषण की एक वजह’ है. मंत्रीजी ने सोचा है कि ‘दिल्ली में रोजाना आ घुसनेवाले व्यावसायिक वाहन वायु-प्रदूषण का कारक हैं. सो, कोई और रास्ता बना कर उन्हें दिल्ली के बाहर से ही अपने गंतव्य की ओर जाने दिया जाये.’
केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री दोनों मान कर चल रहे हैं कि दिल्ली वायु-प्रदूषण की मुख्य वजह वाहनों का धुआं है! जाहिर है, फिर समाधान भी वाहनों को ही केंद्र में रख कर सोचे जा रहे हैं. कोई दिल्ली में प्रवेश करनेवाले वाहनों की संख्या दिल्ली के बाहर-बाहर सड़क बना कर करना चाहता है, जैसे गडकरी जी. कोई वाहनों की संख्या कम करने के लिए सम-विषम तारीखों को सम-विषम संख्या वाली कारों से चलने का समाधान सुझाता है, जैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री.
बगैर सार्वजनिक परिवहन के पुख्ता इंतजाम का सम-विषम सख्या में चलाने पर लोगों को आवागमन में परेशानी होगी, कुल 450 पर लोगों पर औसतन एक पुलिसकर्मी वाली दिल्ली में सम-विषम संख्या वाली कारों पर निगरानी रख पाना व्यावहारिक नहीं जान पड़ता. जैसी अटकलें और आवागमन की आजादी जीवन जीने की आजादी के बुनियादी अधिकार का हिस्सा है जैसी कानूनी दलीलें भी दिल्ली में वायु-प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों को मान कर दी जा रही हैं.
लेकिन क्या सचमुच स्वस्थ लोगों को बीमार डालते और बच्चे, बुजुर्ग और बीमार के लिए जानलेवा बनती दिल्ली के वायु-प्रदूषण की मुख्य वजह वाहन हैं?
थोड़ा पीछे चलें. मार्च में जब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने दस साल से ज्यादा पुराने डीजल और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को प्रदूषण का जिम्मेवार मान कर उनके चलने पर रोक लगायी, तो केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय ने आइआइटी दिल्ली के एक रिसर्च को आधार मान कर प्राधिकरण के सामने तर्क दिया कि पुराने वाहनों को वायु-प्रदूषण में योगदान नगण्य (पार्टिकुलेट मैटर 2.5 माइक्रान) है और दिल्ली के कुल वाहनों में पुरानी कारें तो महज 1 प्रतिशत भर हैं, सो वायु-प्रदूषण में उनकी हिस्सेदारी और भी कम है. दलील का निष्कर्ष यह कि पुराने वाहनों को चलते रहने देना चाहिए. मंत्रालय की मार्च की यह दलील अब उलट गयी है.
इस दलील की एक तरह से काट में ही हफ्ते भर पहले दिल्ली हाइकोर्ट ने वायु-प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र और राज्य सरकार को समाधान के व्यापक उपाय करने के निर्देश दिये.
निर्देश में केंद्र और राज्य सरकार को कहा गया कि ‘धूलिकण न्यूनतम हो, यह सुनिश्चित किये बगैर कोई भी इमारत या सड़क नहीं बननी चाहिए. दिल्ली हाइकोर्ट से पहले 2011 में दिल्ली समेत सात बड़े शहरों पर केंद्रित पर्यावरण मंत्रालय के एक शोध में कहा गया था कि औद्योगिक उत्सर्जन और निर्माण-कार्यों से उड़नेवाली धूल दिल्ली में वाहनों की तुलना में वायु-प्रदूषण का बड़ा कारण है.
गडकरी और केजरीवाल दोनों निर्माण-कार्य और औद्योगिक उत्सर्जन पर पाबंदी नहीं लगा सकते, क्योंकि ये उनकी विकासवादी राजनीति के आधार-स्तंभों में हैं. सो दोनों वाहनों का चलना रोकना चाहते हैं. उन्हें पता है, लोग विरोध करेंगे और पाबंदी हटा ली जायेगी.

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