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बेटे-बेटी में भेद नहीं, तो अधिकार में क्यों
पिछले दिनों ग्वालियर नगर निगम के रिटायर्ड कर्मचारी किशन लाल चावड़िया का देहावसान हो गया. उनकी सिर्फ तीन पुत्रियां हैं. सो समाज से फरमान आया के उनके नाती मुखाग्नि दें. किशन लाल की दो अविवाहित बेटियां रंजीता एवं पूनम ने कहा कि दोनों बहनों में एक पिता को मुखाग्नि देगी. समाज के बुजुर्ग लोगों ने […]
पिछले दिनों ग्वालियर नगर निगम के रिटायर्ड कर्मचारी किशन लाल चावड़िया का देहावसान हो गया. उनकी सिर्फ तीन पुत्रियां हैं. सो समाज से फरमान आया के उनके नाती मुखाग्नि दें. किशन लाल की दो अविवाहित बेटियां रंजीता एवं पूनम ने कहा कि दोनों बहनों में एक पिता को मुखाग्नि देगी. समाज के बुजुर्ग लोगों ने शास्त्र और परंपरा का हवाला दिया.
भगवान का वास्ता दिया. बेटियां नहीं मानीं, तो लोग उन्हें डराने-धमकाने लगे. किसी ने िसर गंजा करने की धमकी दी, तो किसी ने समाज एवं गांव से निकालने का हुक्म सुना दिया. इतने में किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने दोनों बहनों से बातचीत के बाद पूनम को मुखाग्नि देने की इजाजत दे दी.
समाज के ठेकेदार बतायें कि बेटी के मुखाग्नि देने से क्या आफत आन पड़ी. जब हम बेटे-बेटी में भेद करने के खिलाफ हैं, तो उनके अधिकारों में भेद क्यों? हमें जल्द इन रूढ़ियों से निकलना होगा. डिजिटल युग में हम पाषाण युग के अंधेरे में नहीं रह सकते.- जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी
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